स्नेह की जंजीर हो तुम
गीत का सावन उमड़ता
प्रीति का शुभ स्वप्न पलता
चांद सी तुम हंस रही हो
शून्य उर में धंस रही हो।
प्यार की मधु पीर हो तुम
स्नेह की जंजीर हो तुम।
हंस रही हो क्यों मचलती
जा रही हो क्यों उछालती
फेर दो निज दृष्टि कोमल
बन सकेगी प्यार संबल।
धंस रही हो तुम हृदय में
भाव की तस्वीर हो तुम।
आप सको तो पास आओ
कनखियों से मत बुलाओ
उड़ रहा है चारू अंचल
स्वप्न में तुम आ रही प्रिय।
बुझ चुके अरमान, धूमिल
मैं बंधा तुम से सुहागिन।
पट तुम्हारा आसमानी
खिल रही कोमल जवानी
राग की किरणें सुहानी
है अधर आवस नूरानी।
जो न चुभकर फिर निकलना
वह हृदय का तीर हो तुम।
— कालिका प्रसाद सेमवाल