मुक्तक/दोहा

कौन

गम की तेज धारा में , बहना चाहता है कौन

यहां गम के अंधेरे में , रहना चाहता है कौन

अक्सर दिल की वो बातें रह जाती हैं दिल में ही

सुनना चाहता है कौन, कहना चाहता है कौन

 

हुआ है साथ जो दिल के, फसाना हम किसे कह दें

नये तेवर सभी के हैं , पुराना हम किसे कह दें

सच ही बात है दुनिया में न कोई है किसी का भी

किसे अपना कहें और बेगाना हम किसे कह दें

 

दिन ने चैन छीना है, नीदें रात ने छीना

मेरे सीने की ठंडक को बरसात ने छीना

अकेला था तो कोई गम नहीं मुझको सताता था

सूकूं के चार पल जो थे तुम्हारे साथ ने छीना

 

कभी जो मांगते हम थे बताओ वो दुआ क्या थी

तुमको चाह बैठे तो , कहो उसकी सजा क्या थी

एक झटके में तुमने कर दिया मुझको परायों सा

सिवा तुमसे मोहब्बत के, कहो मेरी खता क्या थी

विक्रम कुमार

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