कविता
तू सागर की चंचल लहर
और मैं शांत किनारा हूं
तू सहारों का है सहारा
मै नितांत बेसहारा हूं
जब जब तू मुझसे टकराती
तब तब मैं खुद को हारा हूं
तू मेरे सीने के जख्म सी
और मैं मरहम तुम्हारा हूं
तू तो है मेरी सखी सहेली
पर मैं ना तुझे गवारा हूं
तू मुझे छूकर हुई नमक सी
और मै तुझे छूकर खारा हूं
तुम हो बस अपनी ही धुन मे
और मैं तेरे इश्क मारा हूं
तुम लाजवंती की क्यारी सी
और मैं निर्लज्ज अवारा हूं
— आयुष त्रिपाठी