कविता

प्रकृति का रौद्र रूप

जब-जब भी मूर्ख मानव ने, अपनी अति दिखलायी हैं,
प्रकृति का शोषण करके, स्वार्थी प्रकृति प्रकटायी है,
तब-तब शान्त प्रकृति ने, रौद्र रूप है धार लिया,
कर विनाश मुर्ख मानव का,नव सौन्दर्य श्रृंगार किया,
जंगल काटे,मंगल ढून्ढे, नदी नीर को चीर दिया,
अणु से परमाणु बनाकर, धरा को गहरा घाव दिया,
शिकार शौक में,जीव मारकर,पशुता को है धार लिया,
तब-तब शान्त प्रकृति ने, रौद्र रूप है धार लिया,
कर विनाश मुर्ख मानव का,नव सौन्दर्य श्रृंगार किया,
COVID-19 तो संकेत मात्र है,जल प्लावन भी बाकी हैं,
समय रह्ते जाग रे मानव, आगे का जीवन भावी हैं,
अपनी गलती आप मानकर,क्षमायाचना की माँग करो,
श्रेष्ठ धरा, आप माँ सभी की, मुर्ख मानव का उद्धार करो,
मुर्ख मानव का उद्धार करो,नव जीवन श्रृंगार करो।।

मदन सिंह सिन्दल "कनक"

पिता- श्री शम्भु सिंह जी सिन्दल माता- श्रीमती गंगा कंवर जन्म-15 मई 1990 शिक्षा-PG IN ENGLISH, B.ED(ENGLISH, हिन्दी) सम्प्रति- अध्यापक (कवि,लेखक) पता- सादडी, तह-देसूरी, जिला- पाली, राजस्थान। दूरभाष-8094349248