कहानी

नया सवेरा

“नहीं! नहीं!! और नहीं!!…….मैं एक विधवा को अपनी बहु नहीं बना सकती।” आभा तल्ख आवाज में लगभग चीख पड़ी।
“पर क्यों माँ?! मैं प्रेम करता हूँ उससे और वह भी मुझसे उतना ही प्रेम करती है।” विप्लव ने माता से मनुहार किया।
“समाज क्या कहेगा बेटा?” इस बार वाणी की तल्खी कम हो गई थी।
“समाज क्या कहेगा इसकी मुझे परवाह नहीं।”
“…..और शास्त्र भी तो इसकी अनुमति नहीं देते!!” माँ की वाणी अब कोमल हो चुकी थी परंतु दृढ़ता अब भी थी।
“कौन कहता है कि शास्त्र इसकी अनुमति नहीं देते माँ?! वास्तव में हमें अपने शास्त्रों का ज्ञान ही नहीं है।” विनय पूर्ण स्वर में विप्लव ने अपना पक्ष रखा।

आभा मौन ही सुनती रही परंतु उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव स्पष्ट दिख रहे थे मानो पूछ रहे हों कि ये क्या कह रहा है? हम तो अभी तक यही जानते आ रहे हैं कि शास्त्र इसकी अनुमति नहीं देते।

अपनी बातों के पड़ते प्रभाव को देख विप्लव ने कुछ क्षण ठहर कर पुनः जारी किया, “माँ! एक बात बताइए; बाली के निधन के पश्चात बाली की पत्नी तारा का क्या हुआ?”

आभा पुनः मौन रही। विप्लव ने आगे जारी किया, “तारा का विवाह हुआ सुग्रीव के साथ। फिर आप कैसे कह सकते हैं कि शास्त्र इसकी अनुमति नहीं देते!! ठीक वैसे ही रावण की मृत्यु पश्चात भी मंदोदरी का विवाह विभीषण से हुआ।” पल भर के विराम पश्चात विप्लव ने पुनः कहा, “माँ! वास्तव में हमें अपने शास्त्रों की जानकारी ही नहीं है। हमें शास्त्रों का विधिवत ज्ञान मिलता नहीं और आजकल संस्कृत भाषा भी लगभग मृतप्राय हो चुकी है जिससे हम अपने धर्मग्रंथों से दूर हो चुके हैं।”

विप्लव के तर्कों ने आभा पर गहरा प्रभाव डाला। कुछ सोचकर उसने कहा, “रात बहुत हो चुकी, अब तुम विश्राम करो। मैं कल बताऊँगी।”

दोनों के पग अपने-अपने शयनकक्ष की ओर बढ़ गए। परंतु आभा की आँखों से नींद कोसों दूर थी। इस दृष्टिकोण से तो उसने कभी सोचा न था। विप्लव के तर्कों ने उसे निरूत्तर कर दिया था। सोचते-सोचते कब नींद ने उसे अपने आगोश में ले लिया उसे पता ही न चला।

पक्षियों की चहचहाट और खिड़की की झिरी से आती सूर्य की सिंदूरी किरणों ने आभा को जगाया। उसके मानस पटल पर विगत रात्रि की चर्चा कौंध गई। उसने निर्णय ले लिया था। सूर्य की सिंदूरी किरणों ने आभा के चेहरे को प्रदीप्त किया या ठोस निर्णय ने कहना मुश्किल है। उसके कदम बेटे के कक्ष की ओर मुड़ गए। जल्दी से पुत्र को जगा कर उसने आदेश दिया, “शीघ्र स्नान ध्यान कर पंडित जी के पास चले जाओ! मुहूर्त भी तो निकालना है!” विप्लव ने हर्षातिरेक से माँ को गले लगा लिया। उसकी नजर खिड़की पर पड़ी। अरुणाभ सूर्य आकाश में मुस्कुरा रहा था, उसके जीवन में आज नया सवेरा उदित हो रहा था।

अनंत पुरोहित ‘अनंत’

अनंत पुरोहित 'अनंत'

*पिता* ~ श्री बी आर पुरोहित *माता* ~ श्रीमती जाह्नवी पुरोहित *जन्म व जन्मस्थान* ~ 28.07.1981 ग्रा खटखटी, पोस्ट बसना जि. महासमुंद (छ.ग.) - 493554 *शिक्षा* ~ बीई (मैकेनिकल) *संप्रति* ~ जनरल मैनेजर (पाॅवर प्लांट, ड्रोलिया इलेक्ट्रोस्टील्स प्रा लि) *लेखन विधा* ~ कहानी, नवगीत, हाइकु, आलेख, छंद *प्रकाशित पुस्तकें* ~ 'ये कुण्डलियाँ बोलती हैं' (साझा कुण्डलियाँ संग्रह) *प्राप्त सम्मान* ~ नवीन कदम की ओर से श्रेष्ठ लघुकथा का सम्मान *संपर्क सूत्र* ~ 8602374011, 7999190954 [email protected]