हाचड़ (फुरसतिया मनोरंजन)
“हाचड़” (फुरसतिया मनोरंजन)
कौवा अपनी राग अलाप रहा था और कोयल अपनी। मजे की बात, दोनों के श्रोता आँख मूँदकर आत्मविभोर हो रहे थे।अंधी दौड़ थी फिर भी लोग जी जान लगाकर दौड़ रहे थे। न ठंड की चिंता थी न महंगाई के मार की, न राष्ट्र हित की और न राष्ट्र विकास की। अगर कुछ था तो बस नाम कमाने की ललक और बड़ी कुर्सी की लपक । इस ललक/लपक में न जाने कितने लोग मर मुरा गए, कितनी बसें जल गई, कितने राहगीर जख्मी हो गए। इसकी किसी को परवाह नहीं है। मीडिया वाले चिल्ला चिल्ला कर नजारा दिखाने के लिए परेशान हैं तो नेता बिरादरी प्रदर्शन के लिए धरना दे रहे थे सत्याग्रह का इससे बढ़िया नमूना शायद ही कोई हो। जानबूझ कर लोग अपने पैर दलदल में फंसा रहे है और उलाहना दे रहे हैं कि सरकार कुछ कर नहीं रही है। अगर यही सब करने के लिए आप भी सरकार बनाना चाहते हैं तो बना लीजिए और दिखा दीजिये विश्व बिरादरी को कि हमारा तंत्र सबसे बढ़िया है।
अरे मेरे भाई, तनिक सोचिए तो सही, आप कहाँ से चलकर कहाँ आये हैं और आगे अब कहाँ जाना है। पूर्वजों ने समयानुरूप अपना पसीना बहाया है जो आज परिलक्षित हो रहा है। नमन कीजिये उन लोगों को जिन्होंने कम साधन में भारत माँ को गर्वित किया है। उनकी बात क्यों करना जिन्होंने ने केवल और केवल अपना जीवन जीया है और अन्य को दर्दित छाले दिया है। विश्व तीसरे युद्ध के लिए घिरता जा रहा है और हम आपस में ही लड़ रहे है। समय की मांग है कि हाथ से हाथ और कंधे से कंधा मिलाकर चलें न कि उनके लिए परेशान रहे जो कभी हमारे हुए ही नहीं और न होने की संभावना है।
संविधान संशोधन गर लाजिमी है तो होना ही चाहिए पर मानवता किसी भी कीमत पर घायल न हो इसका ध्यान भी रखना चाहिए। हाँ एक बात का विशेष ध्यान ज़रूरी है कहीं म्लेच्छ न हमपर हावी हो जाएं और घिनौना अत्यचार पुनः शुरू कर दें। महाभारत की प्रतीति से बचना होगा। भाई, भाई का सम्मान करना ही सुंदर संस्कारित विकास है। एक कहावत यहाँ जरूरी है अपने ही अपने होते हैं गैरों का क्या भरोसा?। ॐ जा माँ भारती!
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी