कुंडलिया
“कुंडलिया”
मेरे बगिया में खिला, सुंदर एक गुलाब
गेंदा भी है संग में, मीठा नलका आब
मीठा नलका आब, पी रही है गौरैया
रंभाती है रोज, देखकर मेरी गैया
कह गौतम कविराय, द्वार पर बछिया घेरे
सुंदर भारत भूमि, मित्र आना घर मेरे।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी