मुक्तक
“मुक्तक”
बहुत दिनों के बाद मिला है बच्चों ऐसा मौका।
होली में हुडदंग नहीं है नहीं सचिन का चौका।
मोबाइल में मस्त हैं सारे राग फाग फगुहारे-
ढोलक और मंजीरा तरसे तरसे पायल झुमका।।
पिचकारी में रंग नहीं है नहीं अबीर गुलाला।
मलो न मुख पर रोग करोना दूर करो विष प्याला।
चीन हीन का नया खिलौना है मानव का वैरी-
बंदकरो जी हाथ मिलाना न खोलो मुख ताला।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी