कैक्ट्स
आज चार दिन बाद अस्पताल से मुझे छुट्टी मिली थी ,कमजोर हो चुके शरीर को लकड़ी के सहारे धीरे -धीरे चलते हुए अपने घर में प्रवेश किया व आराम करने के लिए तकिए पर सिर रखा ही था कि पड़ोस की सीढ़ियों से उतरने के कई पदचाप धड़ धड़ करते हुए सुनाई दिए । एक तो बीमारी की कमजोरी और दूसरे अकेले पन की संत्रस्त जिंदगी में यह खलल मुझे बहुत ही नागवार गुजरा । समय-असमय घर आना व खिलखिला कर जोर से हंसना मुझ जैसी मधुमेह व दिल के मरीज को और भी ज्यादा परेशान कर देता था ।
कुछ दिनों में तबियत थोड़ी सुधरी लेकिन माहौल में छाई मौसम की खुमारी भी मेरी उदासी को दूर नहीं कर सकी थी । आज दो दिन के बाद बारिश रुकी थी ,मौसम खुशनुमा हो रहा था,चलते-चलते मैं बगीचे तक आ गई थी अचानक मेरी नज़र एक क्यारी पर पड़ी जहाँ एक कैक्टस उगा हुआ दिखा जिसके कांटे चारों तरफ फैल चुके थे । उसे देखते ही मेरे मन में विचार कौंधा,” यह तो बड़ा ही अपशकुनी होता है घर में। ” और मैंने माली से उसे कटवाने की सोच ली ।
जब माली आया तब मैंने उसे कहा,” यह कैक्टस काट देना ।” वह बोला ,” मैडम यह कैक्टस आपके डाइबिटीज़ व दिल के रोग में बहुत लाभदायक होती है। आप इसे न ही काटें तो बेहतर होगा।
अचानक पड़ोस वाले घर पर नज़र पड़ी और चारों हँसते-बतियाते हाथों में बैग लटकाए सीढियां उतर रहे थे ,शायद अपने कॉलेज या काम पर जा रहे होंगे । “अच्छा है अब सारे दिन शांति रहेगी ” यह सोचते हुए मैं अंदर आकर लेट गईं ।
रात गहराने लगी थी,मैंने हल्का सा दलिया खाया और जाकर लेट गईं । मेरे चेहरे पर एक अलग सी बेचैनी सी छाई हुई थी जो उन लड़कों के हंसने की आवाज़ से और गति पकड़ रही थी । मैं सोच ही रही थीं कि आज शाम को इनके मकान-मालिक से बात करके इन चारों को यहां से निकलवा कर ही रहूंगी ।
इस खयाल के साथ ही न जाने कब आँख लग गई । अचानक रात को उनके सीने में तेज दर्द उठा और मैं जोर से कराह उठीं । उनका चिल्लाना अनवरत चालू था ।अचानक मुझे तीन चार साये कमरे में दाखिल होते हुए दिखे ,पास आने पर स्पष्ट हुआ कि वे वही चारों लड़के थे जो दीवार फांद कर उनके घर मे आए थे । दो मिनट बाद ही एम्बुलेंस भी पहुंच चुकी थी।
तीन दिन बाद आईसीयू से बाहर आई तो डॉक्टर ने बताया कि इन चारों ने ही आपको बचाया अन्यथा आपका बचना नामुमकिन था ।
अब यह कैक्टस की तरह ही चारों लड़के मेरे जीवन का हिस्सा बन चुके थे ।इनका खिलखिलाना व समय-असमय उनका घर आना मेरे लिए इन्सुलिन व ऑक्सीजन का काम कर रहे थे ।
— कुसुम पारीक