” बनता हर कोई भोला है ” .
गीत
मन से मन के तार जुड़े हैं ,
मन से मन को तोला है .
जगमग करती इस दुनिया में ,
बनता हर कोई भोला है .
सागर खारा , आँसू खारे ,
खार बहे अपने तन से .
मीठी मीठी मिश्री घोलें ,
खार बहे अपने मन से .
अंदर से क्या , बाहर से क्या ,
पल पल बदला चोला है .
जगमग करती इस दुनिया में ,
बनता हर कोई भोला है .
रोज ठगी यों वक्त करे है ,
लगता सब बेमानी है .
कहाँ आचरण शुद्ध रहे हैं ,
पलती ,बेईमानी है .
दूजों के सिर , दोष मढ़ें हम ,
हर पल मन बस डोला है .
जगमग करती इस दुनिया में ,
बनता हर कोई भोला है .
भक्ति भाव सब बना दिखावा ,
संत कहाँ अब पावन हैं .
तन को तो हम , खूब मले हैं ,
मन तो बड़ा अपावन है .
ध्यान , धारणा , चित्त चढ़े ना ,
मन काला , ना धोला है .
जगमग करती इस दुनिया में ,
बनता हर कोई भोला है .
परहित की सब बात करें है ,
अपना हित आगे आये .
पल भर को हमें चैन कहाँ है ,
जीवन भर भागे जायें .
शेष नहीं कुछ हाथ हमारे ,
समय कहाँ कब तोला है .
जगमग करती इस दुनिया में ,
बनता हर कोई भोला है .
प्रेम ही रस वह बड़ा मधुरतम ,
प्रिय मन को हरशाता है .
रात दिवस हम करें जागरण ,
फिर भी मन तो प्यासा है .
प्रेम की अलख जगाये रखना ,
यह अमृत का घोला है .
जगमग करती इस दुनिया में ,
बनता हर कोई भोला है .
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )