एक लाचार औरत
आंखों में भरी आंसू को रोक ली
लज्जा में डूबी वह अपने मुख को तोप ली
चल पड़ी उठा कर अपनी झोली
बच्चों ने खुशी से दौड़े ,खोली झोली
कुछ न पाया निराश मन से मां !
मां के आंसू छलक आये
बच्चों ने भी रोना प्रारंभ किया
मैनेजर ने पुकार लगाई
वह सुनी या नहीं
मैनेजर को अनसुना लगा
कहा चिल्लाकर भाग यहां से
फिर भी है बैठी रही
आकर वेलन चौके को छीन लिया
कोठरी से झोला उठाई
आ गयी रोड पर
मैनेजर का आक्रोश देख
बाकी सब सावधान हुए
गरीब पैदा होते हैं
शोषण के लिए यह सुना था
देख भी लिया
मैं भोजन लिए उसे देख रहा
मैनेजर को भी देखा
वह आगे बढ़ी ,बढ़ती गयी
छोड़ी चरणों की रेखा
सोचा उठ कर रोक लूं
बहते आंसू को पोंछ लूं
और भी सोचा
कल से वह कहां क्या करेगी
शोषण की इस दुनिया में वह
अपमान कहां कहां सहेगी
या खुद को मिट्टी करेगी
या खुद को चांद करेगी
दुनिया ऐसी बांवरी
मरने के बाद याद करेगी
पेट न होता भेंट न होता
शोषण कारी इस जहां में
सेठ ने होता
नर ही नारायण बन गया
नर ही रावण बन गया
नर नर का भछी हो गया
नर में मानवता सो गया
मत भूलो अमीरों
यह अमीरी गरीबों की देन है
हम न होते गरीब तो
तुझको अमीर कौन कहता
— चन्द्र प्रकाश गौतम