गीत/नवगीत

मैं तेरी बेटी हूँ

ना मारो ना माँ ,मैं तेरी बेटी हूँ
दुःख की ना समझो ,मैं सुख की पेटी हूँ
मैं तेरी बेटी हूँ …
मैं सुख की पेटी हूँ …
ना मारो ना माँ मैं तेरी बेटी हूँ …..
मैं ना रही तो ,किसको गुड़िया बुलाओगी
अपना अक्स फिर ,किसमें तुम दिखलाओगी
तेरे लहू का हूँ माँ , मैं भी एक कतरा
लोरी गाकर किसको , फिर तुम सुलाओगी
कहाँ ढूँढती हो तेरी , कोख में लेटी हूँ
दुःख की ना समझो ,मैं सुख की पेटी हूँ
ना मारो ना माँ मैं तेरी बेटी हूँ ………
किसे सुनाओगी माँ ,फिर अपना दुखड़ा
हर्षाओगी देख के ,तुम किसका मुखड़ा
बेटे क्या करते हैं , ये तो जग जाने
वक्त पड़े तो बेटी , माँ को पहचाने
मैं बेटी दुखड़े तेरे , हर लेती हूँ
दुःख की ना समझो , मैं सुख की पेटी हूँ
ना मारो ना माँ मैं तेरी बेटी हूँ ………
क्यों डरती हो ,मुझको पैदा होने दो
अपनी गोदी में मुझको भी सोने दो
क्यों बेटे को मिलती हैं साँसें पूरी
बेटी से क्यों होती है सबकी दूरी
बेटी बेटे में है  , कोई भेद नहीं
दोनों को अपना जीवन जी लेने दो
कब बेटे से अधिक मैं कुछ भी लेती हूँ
ना मारो ना माँ मैं तेरी बेटी हूँ ………
माना   कि बेटा ही , वंश चलाता है
पर दांपत्य में , दोनों का ही नाता है
बेटी ही ना हो तो बहू कहाँ से पाओगी
फिर कैसे दादी नानी कहलाओगी
बिन बेटी के रिश्ते कहाँ पनपते हैं
बेटी से ही तो मकां घर बनते हैं
बेटी कली सी खिलती बाबुल के घर में
पुष्प सी खिलती बनके बहू वर के घर में
बन के बहू सुख पूरे घर को देती हूँ
ना मारो ना माँ मैं तेरी बेटी हूँ ….

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।