कहते-कहते दिन बदलेंगे,सालों गुज़र गये
हम भी सुख का रस चख लेंगे,सालों गुज़र गये!
औरों की शादी में शामिल हुये बहुत,पर हम-
दूल्हा कब तक सच में बनेंगे,सालों गुज़र गये!
आरक्षण में गधा तरे कर रहे ऐश,पर हम-
कब पक्की नौकरी करेंगे,सालों गुज़र गये!
सोच-सोचकर बात बन्धुवर,निज माता के हम-
अंतर के दुःख सकल हरेंगे,सालों गुज़र गये!
चाय बेचने वाला मुखिया बना देश का पर,
‘सरस’ निज दिन कब बहुरेंगे,सालों गुज़र गये