अपनी भूमिका भू पे’ निभाकर हमें लौटकर जाना है,
सब कुछ अपना छोड़ धरा पर हमें लौटकर जाना है।
गौण है सचमुच रुपया-पैसा मुख्य है बस व्यवहार सनम,
प्रेम का धन बस मींत कमाकर हमें लौटकर जाना है।
प्रतिनिधि हैं हम शारदे माँ के शब्द-साधना करें सतत्,
ग्रन्थ स्वयं को माँ का बनाकर हमें लौटकर जाना है।
मित्र बनायें गैर को अपना अरु जन-जन से प्यार करें,
भेदभाव सब दिल से हटाकर हमें लौटकर जाना है।
प्रतिभा तुम में भले ‘सरस’ पर मृत्यु पुकारेगी इक दिन,
अहंकार अपना घिरयाकर हमें लौटकर जाना है।
— सतीश तिवारी ‘सरस’