कहानी

एक नई शुरुआत

प्रकृति कब एक जैसी रहती है ? मौसम भी तो बदलते रहते हैं ।कभी कड़ाके की ठंड हाड़ मांस गला देती है तो कभी  भीषण ताप तन को झुलसा देता है। एक बरस में ही  ॠतुऐं बदलती रहतीं हैं ,परिवर्तन  तो एक शाश्वत  सत्य है जब घड़ी की सुई एक जगह नहीं रुकती तो मनुष्य का क्या ….।
     बाहर जोरदार   बारिश हो रही थी, मेघा बाल्कनी  में बैठी चाय के सिप के साथ जीवन की सच्चाई को स्वीकार करने के लिए खुद से जद्दो-जहद कर रही थी। एक ही झटके में   कैसे स्वीकार कर लेती इस फैसले को जो उसके अस्तित्व को ही बदल रहा था।
 उंमड़ते घुमड़ते बादलों के संग मन भी उड़ रहा था उन पलों में  जब दिल के कोने में बसा मनमीत जीवन साथी
बन ताउम्र साथ देने का वादा किया था।
    बादल के साथ बंधन में बंध कर मेघा अपने भाग्य पर इतराती रहती ।उच्च पद पर आसीन खुबसूरत हमसफर उसे दिल के पास यूँ संजोकर रखता था जैसे उसे पत्नी नहीं मोम की गुड़िया मिली हो । दो उन्मुक्त पंछी प्यार की पींगे बढ़ा ही रहे थे कि ना जाने किसकी बुरी नजर  नव विवाहित जोड़े को लग गई।
हनीमून मनाने के लिए गये तो थे जोड़े में  पर मेघा लौटी अकेली, जिंदगी भर ना भूल पाने वाली  टीस लिए….गंगा की लहरों में अठखेलियां करते हुए इन्होंने कभी सोचा ही नहीं था कि इनका साथ बस यहीं तक है।
    कुछ दिनों की मातमपुर्सी के बाद परिवार के सभी सदस्य अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्त हो गये पर मेघा दिल में बादल की यादों को समेटे आफिस और घर में सिमटती गई।होठ तो जैसे  सिल से गये थे, मतलब भर बात करती मतलब भर मुस्कराती, हंसी तो जैसे छिन ही ली गई थी उसकी ।
 एक दिन अचानक एक सहकर्मी ने काम समझाते हुए उसके हाथ को छू लिया।पहले तो मेघा को लगा शायद अनजाने में ऐसा हो गया हो पर दिन प्रतिदिन उसकी उद्दडंता बढ़ती जा रही थी। बड़ा अजीब सा महसूस होता मेघा को, जो मित्र बादल के रहते हुए उसे भाभी सा मान देता था आज उसे सहज सुलभ समझ मदद के बहाने अंतरंगता बढ़ाने की कोशिश कर रहा था। बदनामी के डर से बेबस सी मेघा चाहकर भी प्रतिवाद नहीं कर पा रही थी। ससुराल वाले दिन प्रतिदिन बहु के कुम्हलाये चेहरे को देखकर चिंतित रहते पर पति की असमय मौत को कारण समझ चुप लगा जाते।
  मेघा अपनी किस्मत पर रोती और अपने जज्बातों को डायरी में लिख कर अपना दिल हल्का कर लेती। बुजुर्ग सास ससुर के सामने तो जी भर कर रो भी नहीं सकती थी वो।
     बहुत दिनों के बाद आज घर में उत्सव सा माहौल था, बादल का छोटा भाई पवन विदेश से आया हुआ था जो अपनी पढ़ाई की वजह से भाई की शादी में नहीं आ पाया था। मेघा पवन के सामने जाने से बच रही थी , एक नजर में उसके चेहरे पर उसे अपना पति नजर आता पर सच्चाई याद आते ही आँखे उमड़ पड़ती ।
      छुट्टी का दिन था, मेघा अपने कमरे में बैठी  बादल के फोटो को एकटक देख रही थी…जाने क्यों नाराज होकर चले गये तुम यूँ हाथ झटक कर, मेरी खता बता तो जाते, मुझे  मंझधार में  छोड़कर कहाँ चले गये हो? तभी सासु माँ के स्पर्श से जैसे सोते से जागी। रोती हुई मेघा को उन्होंने अपने अंकों में समेट लिया और ना जाने क्या क्या बोलती गईं । सारी बातों के सार में मेघा को  यही समझ आया कि उन्होंने डायरी पढ़ ली थी । बहु की तकलीफ को माँ के दिल से महसूस कर अपने छोटे बेटे की जीवनसंगिनी बनने का अनुरोध करती सास आज इस वहम को तोड़ रही थी कि सास कभी माँ नहीं बन सकती है।
सामने रखे  फोटोफ्रेम में दूल्हा बना बादल अपनी दुल्हन के मांग में सिंदूर भर रहा था,जन्मों का साथ निभाने के लिए  पर नियती को तो कुछ और ही मंजूर था।सरल सौम्य सास के चेहरे  पर महीनों बाद हंसी दिख रही थी। पलट कर इनकार भी नहीं कर पाई मेघा।
कैसे बताती …बादल के बिना मर मर कर जी रही थी ।जी भी लेती पर समाज से कैसे बचाती अपने आप को जो बादल के जाने के साथ ही बदल गया , विधवा या तलाकशुदा स्त्री को क्यो लोग  बुरी नजरों से देखने लगते हैं ।उनकी अस्मिता  पर क्यों प्रश्नचिन्ह लगा दिया जाता है।
भावनाओं को काबू में  रखकर मेघा ने सासु माँ से दो दिन का समय  मांगा ।
   दो दिन से सूरज चरम सीमा पार करता धरा को दग्ध  कर रहा था। अचानक हुए मौसम परिवर्तन से आज तपती भूमि  बारिश के जल से तृप्त हो सुकून  महसूस कर रही थी।
     आज मेघा बारिश में  पूरी तरह भींग जाना चाह रही थी। एकाएक  हवा का झोंका आया और बादलों के झुंड को समेट कर  धीरे-धीरे अपने संग ले जाने लगा। मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू से वातावरण महक उठा था ।
अंततः उसने सासु माँ के अनुरोध को स्वीकार कर लिया, परिवर्तन तो जीवन की सच्चाई  है ऐसी सच्चाई  जिससे कभी इंकार नहीं किया जा सकता।आगे  बढ़ने का नाम ही जिन्दगी है।सुख भरी नई जिंदगी मेघा का बाहें फैलाए इंतजार कर रही थी
— किरण बरनवाल

किरण बरनवाल

मैं जमशेदपुर में रहती हूँ और बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय से स्नातक किया।एक सफल गृहणी के साथ लेखन में रुचि है।युवावस्था से ही हिन्दी साहित्य के प्रति विशेष झुकाव रहा।