लघुकथा

नेतागिरी

अपने हजारों समर्थकों के साथ वह स्थानीय नेता भगवान श्री गणेश के शरण में जा पहुँचा । कैमरे और उनकी फ़्लैश लाइटें चमकने लगीं । अपने चरणों में झुके नेता को देखकर भगवान विघ्नविनाशक स्मित हास्य के साथ बोले ,” वत्स ! अपनी पार्टी के नेता की गिरफ्तारी से दुःखी होकर उसे छुड़ाने की आस लिए हुए तुम मेरे पास आए हो । उस नेता के लिए तुम्हारा प्रेम बहुत ही सराहनीय है ! “
उसके चरणों में नतमस्तक वह नेता बोला ,” क्षमा करें प्रभु ! आप तो अंतर्यामी हैं । अब आपसे क्या छिपाना ? अपने नेताजी अंदर रहें या बाहर रहें ,हमें क्या फर्क पड़ता है ? हमें तो अपनी नेतागिरी चलानी है और उसके लिए जरूरी है कि हम ये सब नाटक करते रहें । आपसे प्रार्थना है प्रभु ! भले वह नेता सारी जिंदगी जेल से बाहर न आए लेकिन मेरी नेतागिरी की दुकान चलती रहे !”

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।