लघुकथा – आयाराम – गयाराम !
आलोक राम विधायक हैं। अपने आक्रमक तेवरों के कारण सोशल मीडिया वाले उन्हें `आक्रमण कुमार´ सम्बोधित करते हैं। सत्ताधारी सरकार की शुरूआती ६ महिनों के कार्यकाल की धज्जियां उड़ाकर रख दी हैं इन्होंने। इनके तीखे तेवरों से आहत होकर मुख्यमंत्री ने अपने सहयोगी मंत्रियों से विचार विमर्श किया। आलोक राम का `सदुपयोग´ करने का सुझाव पेश किया जिसे सभी ने एकमत से सराहा।
आलोक राम मानसून सत्र शुरू होने के एक दिन पहले, अपना भाषण याद करने के लिए काग़ज़ हाथ में लेकर ख़ुशी से सोचने लगे, अब सरकार की नकेल कसने का सही समय आ गया है। उनकी ईंट से ईंट बजा दूंगा। भाषण पढ़ना शुरू किया, जिसमें लिखा था, “ वर्तमान सरकार के सिर्फ़ ६ महिनों के कार्यकाल में कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है। सारे बदमाश निर्भय होकर अपराध कर रहे हैं। युवतियों और महिलाओं की सुरक्षा ख़तरे में पड़ चुकी है। बेरोज़गारी में बढ़ोतरी हुई है। महंगाई सुरसा के मुंह के समान तेजी से बढ़ती जा रही है। राज्य में सरकार के कामों से नाराज़ जनता आए दिन हड़ताल का आयोजन कर रही है। दिन ब दिन बढ़ते जातीय दंगों से जनता बेचैन, बेहाल हो रही है। `राम राज्य´ लाने का वादा करने वाली सरकार, राज्य में शांति स्थापित करने में असफल हो चुकी है। अब गृहमंत्री की नैतिक जिम्मेदारी है कि वो अपने पद से त्याग पत्र दे दे ………………. “
इतने में विधायक आलोक राम का पी ए दौड़ता – हांफता उनके पास आया और माफ़ी मांगकर कहा, “ सरजी गलती से मैंने आपको पुराने भाषण वाला काग़ज़ दे दिया है। दरअसल वो तब का भाषण है जब आप विपक्ष के विधायक नेता थे। अब आप सत्ताधारी सरकार में मंत्री बन चुके हैं। अब आपको यह भाषण पढ़कर सुनाना है, जिस में पिछली सरकार के भ्रष्टाचारों का कच्चा चिट्ठा है। “ यह कहते हुए पी ए ने मंत्री महोदय को चार पन्ने पकड़ाए।
आलोक राम के चेहरे पर कुटिल मुस्कान फैलने लगीं। कहा, “ अच्छा हुआ तुमने समय रहते मुझे चेताया। वरना मेरे हाथों बहुत बड़ा अनर्थ हो जाता। फिर तो मैं…। “
-– अशोक वाधवाणी