मुक्तक
“मुक्तक”
सु-लोहड़ी खिचड़ी गई, अब शुभ प्रयाग स्नान।
गंगा जी के धाम में, बिन आधार न दान।
बिनु कोरोना जाँच के, सुखी न संगम द्वार-
रोज सभाएँ हो रहीं, धरना धर्म किसान।।-1
बंधन हिंदू धर्म पर, लगता है चहुँ ओर।
बिनु मुर्गे की बाग के, कहाँ द्वार पर भोर।
पौराणिक मेला स्वयं, भरता है प्रति वर्ष-
अब संगम भय खा रहा, कोरोना का शोर।।-2
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी