कब कक्षाएँ भरी होंगी…
गुमनाम दौर सी
सिमट गई ज़िंदगी
आॅनलाइन कक्षाओं
के अनोखे अंदाज़ में…
वक्त की करवटों ने
मायने बदल दिए
लफ़्ज़ दर लफ़्ज़
पढ़ने के मिजाज़ में…
गुम हो गया शोर गुल
खो गए मासूम चेहरे
वीराना पसरा हुआ है
खैर के एहतियाज़ में…
— काव्याक्षरा