दीवार न बनेंगे किसी की राह में।
मिट जाएंगे हके दोस्ती की राह में।
मेंरी ख़ातिर तुम परेशां न होना,
हम मुस्कुरायेंगे वीरानगी की राह में।
गमें बेख़ुदी सदा हमराह होगी,
बारहा मिलूंगा मयकशी की राह में।
तुम क्यूं पशेमां हो तर्के वफ़ा से,
सब जायज है दिल्लगी की राह में।
मैं हूं सबा का एक आवारा झोंका,
यही हश्र है आवारगी की राह में।
— ओमप्रकाश बिन्जवे ” राजसागर “