कथा साहित्यकहानी

उम्मीद का दामन

दिशा, आज बहुत परेशान थी। उसका मन बहुत अधीर था। वह अपनी भावनाएं किसी को बता नहीं सकती थी। वह घर से दूर अपने खेतों में तेज कदमों से चल रही थी। उन्हीं खेतों में वह अपने प्यार से मिलती थी। नवीन को कभी भी ग्रामीण वातावरण पसंद नहीं था। पर वह दिशा की खातिर उससे मिलने खेतों में चला आता था।
दिशा हमेशा उसके ही सपनों में खोई रहती थी। उसने उसके सिवाय किसी मर्द के बारे में कभी भी नहीं सोचा था। उसे नवीन बचपन से ही पसंद था। नवीन भी उसकी छोटी-छोटी ख्वाहिशों पूरी करता रहता था।वह दिशा को बार-बार पढ़ने के लिए कहता था। पर दिशा का पढ़ने में कभी मन नहीं लगता था। वह बड़ी कठिनाइयों से बारहवीं ही पास कर सकी थी।
इसी के साथ उसने पढ़ाई को अलविदा कह दिया था। परिवार इस फैसले पर उसके साथ था।परिवार की सोच थी कि बेटियों का ज्यादा पढ़ना-लिखना ठीक नहीं है। बस दस-बारह पढ़ ली बहुत है।पर नवीन चाहता था कि वह आगे पढ़े,पर उसकी पढ़ाई में रुचि नहीं थी।नवीन आगे पढ़ने के लिए शहर आ गया।
वह दिन-रात पढ़ाई में लगा रहता।पढ़ाई के साथ-साथ वह  जेब खर्च निकालने के लिए एक छोटी सी दुकान पर काम भी करता था। वक्त भागता जा रहा था। नवीन वक्त के साथ चल रहा था। उसकी मेहनत रंग लाई,उसे अच्छी नौकरी मिल गई। पर वह इन छोटी-छोटी सफलताओं को पाकर रुकने वाला नहीं था।
वह गांव का रास्ता लगभग भूल ही चुका था। देखते ही देखते पाँच वर्ष गुजर गए। आज दिशा को देखने वाले आने वाले थे। माता-पिता बहुत चिंतित थे। लड़का बहुत पढ़ा- लिखा था। कहीं हमारी बेटी को नकारा ना दे।दिशा शादी नहीं करना चाहती थी। पर मजबूर थी, क्योंकि नवीन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा था? उसे तो यह भी विश्वास नहीं था कि वह उसे चाहता भी है या नहीं। कभी-कभी वह डर भी जाती थी कि कहीं यह एक तरफ प्यार तो नहीं है। क्योंकि नवीन ने कभी अपने प्यार का इजहार नहीं किया था?पर वह  नवीन के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती थी। सुबह-शाम उसकी आंखों में नवीन का चेहरा छाया रहता था।
परिवार में कोई उत्साह नहीं था।पहले भी कई रिश्ते आए थे। पर बात नहीं बन रही थी। माता-पिता हर बार रिश्ता टूटने पर दिशा का हौसला ही बढ़ाते थे।बेटी परेशान होने की जरूरत नहीं है, तुम्हारे लिए बहुत अच्छा रिश्ता आएगा।वे उसे दिलासा देते रहते थे। पर अंदर ही अंदर वह भी टूट चुके थे। उन्होंने सारे उपाय करके देख लिए थे पर बात नहीं बन रही थी।
परिवार की उम्मीद टूट रही थी। यह रिश्ता उन्हें आखिरी उम्मीद दिख रहा था।जब भी रिश्ता आता था,वह चुप रहती थी। उसके मन में कुछ अलग ही उधेड़बुन चल रहीं थी।
वह साँझ से पहले घर की तरफ लौट जाना चाहती थीं। उसके सिर पर तपते सूरज की रोशनी पड़ रही थी। इस बार वह माता-पिता को निराश नहीं करना चाहती थी। वह इस शीतल पवन को अपने चेहरे पर महसूस कर रही थी। सूरज की गर्मी उसे सुलझा देना चाहती थी। पर वह उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहती थी।
उसे अब भी लग रहा था,नवीन उसे भूल नहीं सकता। वह जरूर लौट आएगा। तभी ठंडी हवा के एक और झोंके ने उसे पूरी तरह तरोताजा कर दिया। यह शीतलता उसे नए उत्सव में भर रही थी। उसके कदम बढ़ते जा रहे थे। जैसे ही वह घर पहुँची।माँ ने उसे इशारा कर दिया।
दिशा ने लड़के के माता-पिता को झुककर प्रणाम किया। जैसे ही वह उनके पास बैठी। लड़के की मां बोली,जैसी सुंदरता का नवीन ने जिक्र किया था।तुम बिल्कुल वैसी ही हो।नवीन का नाम सुनते ही उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया। बेटी शरमाओ नहीं, क्या तुम्हें भी नवीन पसंद है? उसका चेहरा गुलाब की तरह खिल उठा। पर वह कुछ बोल नहीं सकी।
इसका मतलब तुम्हें नवीन पसंद नहीं हैं। जी,ऐसी बात नहीं,फिर किसी बात है, बेटी?नवीन दरवाजे के बाहर खड़ा सब सुन रहा था। वह अचानक उसके करीब आकर खड़ा हो गया!नवीन, मैंने कभी भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा था। दोनों परिवार उन्हें देखकर खिलखिला कर हंस पड़े। क्या अब रिश्ता पक्का कर दे? दोनों परिवार एक साथ बोल उठे, हमने भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा था।

राकेश कुमार तगाला

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