कथा साहित्यकहानी

चैन की नींद

केशव मैं कुछ दिनों से देख रही हूँ। तुम मुझसे  से ढंग से बात भी नहीं करते हो।क्या तुम मेरी किसी बात से नाराज हो? प्लीज कहो ना क्या बात है? मुझसे तुम्हारी उदासी देखी नहीं जाती। केशव, सब कुछ सुनकर भी अनसुना कर रहा था। वह सिगरेट के कस पे कस भर रहा था। वह सिगरेट के धुए में कुछ ढूंढ रहा था।
उसका ध्यान भंग करने के लिए नमिता चाय के कप मेज पर पटकती हुई किचन में चली गई।इससे केशव का ध्यान पूरी तरह भंग हो गया।
पर वह चुपचाप ऑफिस के लिए निकल पड़ा। उसके मन में ढेरों सवाल उमड़ रहे थे। पर उसके पास किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं था। ऑफिस पहुंचते ही उसने चपरासी को अपने सुनसान पड़े केबिन में बुलाया,यार सखाराम, मेज पर अच्छे से कपड़ा तो मार दिया करो।अपनी जिम्मेदारी का भी ख्याल रखा करो,
पर उसे लगा सखाराम उसे कठोर नजरों से धूर रहा था,  साहब आपको कहीं भी सफाई नहीं दिखती।मैं आते हैं सबसे पहले आपके केबिन को चमकाता हूँ। पर सखाराम कहते-कहते वह चुप्पी साध गए।अच्छा छोड़ो,यार एक प्याला चाय तो भिजवा दो।साहब,सिगरेट की डिब्बी भी चाहिए क्या ?
केशव को हमेशा लगता था ,सखाराम उससे किसी बात को लेकर खफा है,इसीलिए तो उसका व्यवहार दिन-प्रतिदिन खट्टा होता जा रहा था।
हाँ-हाँ सिगरेट भी भिजवा देना। केशव कुछ देर तो फाइलो को छेड़ता रहा।उसे खुद ही पता नहीं था, वह कौन सी फाइलें ढूंढने का प्रयास कर रहा था।नीली, पीली ,हरी फाइलों का ढेर उसे बहुत परेशान कर रहा था।साहब,चाय के साथ सिगरेट का पैकेट आपका इंतजार कर रहा हैं।ठीक है सखाराम ।वह सिगरेट पर सिगरेट पीता जा रहा था। उसकी आंखें सिगरेट के धुँए से बोझिल होती जा रही थी। वह कुर्सी पर पसर गया।उसकी आंख लग गई थीं।वह नींद की आगोश में खोता जा रहा था।वह अपनी वर्तमान स्थिति पर विचार कर रहा था,
अभी कुछ समय पहले तक तो सब ठीक चल रहा था। उसे थककर चैन की नींद आ जाती थी।फिर अब ऐसा क्यों हो रहा था?उसके सवाल उसे फिर परेशान कर रहे थे।उसे समय का पता नहीं चला।कब से ऑफिस में सफेद रोशनी उसकी तरफ देख रही थी?ऑफिस के बाहर थोड़ा-थोड़ा अंधेरा फैलने लगा था।घड़ी की टिक-टिक टिक की आवाज उसे साफ सुनाई दे रही थी।
वह ना चाहते हुए भी  कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।सभी कर्मचारी ऑफिस से बाहर निकल रहे थे।जैसे घर पहले पहुँचने की होड़ लग ही। और वह भी रुआंसा सा सड़क पर आ गया। उसने टैक्सी पकड़ी  और घर पहुंच गया।नमिता चाय पर उसी का इंतजार कर रही थी।वह सीधा बैग फेककर वॉशरूम की तरफ भाग गया।
नमिता को उससे यह आशा नहीं थी। पहले वह कभी ऐसा नहीं करता था।ऑफिस से आते ही उसे बाहों में भर लेता था। पर अब कुछ दिनों से उसके व्यवहार में उसके प्रति कड़वाहट साफ झलकती थी।अब तो वह बिस्तर पर सिर्फ करवटें बदलता रहा था।वह उसे रात-रात भर जागते पाती थी।
कई बार उसने उससे बात करने की कोशिश की, पर सब व्यर्थ ही साबित हुआ। आज उसका ऑफिस जाने का मूड नहीं था। पर उसे ना चाहते हुए भी ऑफिस जाना पड़ रहा था। सखाराम में उसे एक पर्ची पकड़ा दी। साहब मिस रीटा आज 11:00 बजे आएगी।रीटा का नाम सुनाते ही,उसकी साँसे ठंडी पड़ने लगी।वह सहज होने की कोशिश करने लगा।पता नहीं उसने रुपयों का प्रबंध किया होगा या नहीं। आखिर वह कहाँ से रुपयों का प्रबंध करेगी?
वह खुद से सवाल-जवाब करने लगा। आखिर क्यों उसने नमिता की बात मानकर अपना सुख चैन खो दिया था। भगवान का दिया सब कुछ तो था हमारे पास,फिर क्यों उसने नमिता की बात मानकर रीटा से रिश्वत मांगी थी?उस गरीब लड़की से—-और वह चुप हो गया।
सर क्या मैं अंदर आ सकती हूँ? जी, सर मैं सिर्फ पचास हज़ार का इंतजाम कर सकी हूँ। इससे पहले वह कुछ और बोल पाती।केशव ने उसे फाइल पकड़ा दी। जिस पर कंप्लीट लिखा था।और उसे पचास हज़ार का पॉकेट भी वापस कर दिया।
अब आप जा सकती हो।उसके मन का बोझ हल्का हो गया था।रीटा का मुस्कुराता चेहरा उसे खुशी दे रहा था। घर पहुंच कर उसने नमिता को बाहों में भर लिया।वह बहुत हैरान थी, पर खुश भी थी।केशव ने उसे सारी घटना बता दी। नमिता को भी अपनी गलती का एहसास ही गया था।
केशव को बिस्तर पर पड़ते ही चैन की नींद आ गई। उसका चेहरा बिल्कुल शांत था। नमिता भी उसकी आगोश में समा गई।उसे भी आज कई दिनों के बाद चैन की नींद आई थी।

राकेश कुमार तगाला

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