ग़ज़ल
तुम्हारी याद को मैं गुनगुनाती हूँ ,तो हंगामा,
मुहब्बत आँख से जब मैं जताती हूँ ,तो हंगामा ।
मेरी तन्हाइयों में वो सदा ही साथ रहता है ,
उसे जब पास में अपने बुलाती हूँ ,तो हंगामा ।
सियासत के खिलाड़ी तो सदा बातों में रहते हैं ,
उसे कमियाँ मैं सारी जब बताती हूँ तो हंगामा ।
न जाने क्यों किया है क़त्ल उस मासूम बच्चे का ,
उसे क़ातिल मैं उसका जब बताती हूँ ,तो हंगामा ।
दुआओं में खुशी जिसकी सदा माँगा किया हमने ,
उसी के दर्द में आँसू बहाती हूँ ,तो हंगामा ।