मुक्तक/दोहा

मुक्तक

01
मौत के  डर से मैं जीना छोड़ दूँ क्या।
ज़िन्दगी  से ज़ंग  लड़ना छोड़ दूँ क्या।
दिख न जाएं आंसू इस दुनिया को मेरे,
इसलिये मैं   राह चलना छोड़ दूँ क्या।

02

आज   रूठे   हुए   रहबर   नहीं   देखे   जाते।
हर  तरफ  ज़ुल्म  का  मंजर  नहीं  देखे  जाते।
हाय  अफ़सोस  बड़ा   होता  मुझे  आए  दिन,
अब  लहू  का   ये   समंदर   नहीं  देखे  जाते।

— अंजु दास “गीतांजलि”

अंजु दास गीतांजलि

पति - श्री संजय कुमार दास शिव शक्ति नगर ,पंचायत भवन नेवालाल चौक , पूर्णियाँ ( बिहार ) पिन नं -854301 मोबाइल नं -9471275776