ग़ज़ल
हम तो दरिया बन के बहना चाहते हैं,
पर अलग सागर से रहना चाहते हैं ।
जिन्दगी ही तो हमारी है रवानी ,
इसकी खातिर दु:ख भी सहना चाहते हैं।
रोक पायेगा नहीं राहें हमारी ,
बात यह साहिल से कहना चाहते हैं।
ऐ हवाओ !बादलों से जाके कह दो ,
ख़ूब बरसे गर वो बहना चाहते हैं ।
रेत को उर्वर बनाने के लिए हम,
हाथ नद-नालों के गहना चाहते हैं ।
— डॉ रामबहादुर चौधरी चंदन