नींद
एक लक्ष्य जो छूट गया,
एक सपना जो टूट गया।
एक चाहत जो मिल ना पायी,
एक इच्छा जो कह ना पायी।
एक रास्ता जो पलट गया,
एक फूल जो सिमट गया।
सब है अधूरे,फिर भी होते पूरे,
उड़ते हैं अपने पंख पसार,
आशाओं का करके विस्तार।
वो अनुपम दिव्य लोक,
जड़ चेतन का करके बिलोप।
करे पूर्ण सभी उम्मीद,
हां है वो सब की नींद।
कोई रोक नहीं कोई टोक नहीं,
किसी झूठे सच की ओट नहीं,
अभिलाषा का अपना ही गगन,
जीते हम जीवन होके मगन।
जो मिली घुटन चेतन रहके,
होता विद्रोह अवचेतन से,
कर्तव्यों का बस बोध नहीं,
अधिकार का पाठ भी पढ़ते हैं।
मिलता सारा जो छूट गया,
अरमान जो काल तू लूट गया,
वो सब मुझे रोज ही मिलता है,
मन हो स्वच्छंद विचरता है,
मिलता प्रतिदिन एक नया गीत,
सबकी नींद हां वो सब की नींद।
— महिमा तिवारी