हिचक
“क्या बात है काम्या! मुझे क्यों बुलाया?”
“सोच विचार कर फैसला किया है, बताना आवश्यक था! मैं सगाई तोड़ रही हूँ। मेरे इस फैसले में परिवार की सहमति भी है।
“ऐसा क्या कर दिया मैंने?” अनिकेत प्रश्नों के भंवर जाल में डूबने-उतरने लगा।
“कुछ करते तो और बात थी। पर कुछ नहीं किया, इसका अफसोस है।”
“कोई और पसंद है तो बताओ, पहेलियाँ मत बुझाओ।”
“तुम्हें एक वयस्क और सहज इंसान समझा था। पर कुछ ऐसी बातें सामने आई हैं कि फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ा। इस दौर में स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर लड़कियाँ तथाकथित श्रवण कुमार को पति रूप में नहीं देखना चाहती। पापा और तुम्हारे मामा के सहमित्र ने बताया था कि तुम अपने मामा के साथ वर्षों तक रहते रहे, तभी अपनी पढ़ाई ढंग से पूरी कर पाये और आज इस बड़े शहर में तुम्हारे पास एक अच्छी नौकरी है।
हालिया दिनों में तुम गृह-नगर गए और यहाँ तुम्हारे मामा-मामी को महामारी ने जकड़ा। दोनों अस्पताल में भर्ती हुये। उन्होंने तुम्हें और तुम्हारी मम्मी को बुलवा भेजा कि घर में आकर रहिए तो उन्हें अपने छोटे-छोटे बच्चों की चिंता न होगी, पर तुम नहीं गए। धीरे-धीरे दोनों… क्या कहूँ? छोटे-छोटे बच्चे भरी दुनिया में अकेले रह गये। उनकी परवरिश में भी सहयोग करना नहीं चाहते। तुम श्रवण कुमार हो या कायर, रब जाने।
खैर, मामा जिसमें दो बार माँ शब्द का उच्चारण होता है, का कहा यूँ अनसुना किया तो मेरी बिसात क्या है? जीवन पथ पर चलते-चलते कोई समस्या आन पड़ी, तो मम्मी-पापा के हाथों की कठपुतली बन मुझसे दामन छुड़ा लोगे। माता-पिता, भाई-बहन के अलावा भी जिंदगी में कई महत्वपूर्ण रिश्ते होते हैं, अब तक नहीं समझ पाए तुम। कुछ माँ-बाप अपने स्वार्थ को सर्वोपरि रखते हैं, तभी बच्चों को नहीं सिखाते।
इतना सब जानने के बाद मन में ऐसी फाँस चुभी है कि तुम जैसे कमजोर इंसान के साथ मैं जिंदगी की नई डगर पर पदार्पण नहीं कर सकती। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हूँ ही, मानसिक संबल की उम्मीद में गठबंधन की उम्मीद उम्मीद लगाई थी, पर…।”
सगाई की अंगूठी उतार कर टेबल पर रख, जो रिश्ते के साथ-साथ कुछ ज्यादा ही चुभने लगी थी, काम्या कॉफी शॉप से बाहर निकल गई। अनिकेत ठगा सा बैठा था।
— नीना सिन्हा