राजनीति

छोटे दल और बडे घातक़ हैं मुंगेरी लाल के हसीन सपने

प्रदेश में सभी राजनैतिक दलों ने 2022 के विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है। हर बार के चुनावों की तरह इस बार भी होने जा रहे चुनावों में छोटे दलों ने भी अपनी रणनीति को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। 2022 के विधानसभा चुनावों में छोटे दलों की उपस्थिति बहुत व्यापक होने जा रही है तथा प्रदेश की राजनीति में एक नया प्रयोग भी होने जा रहा है। कई छोटे दल अपने बड़े सहयोगियों के साथ अभी से ही गुणा भाग करने लगे हैं तथा अपनी हिस्सेदारी पर दबाव बनाने लगे हैं। मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी छोटे दलों के साथ गठबंधन कर रही है और दूसरे दलों के नेताओं को अपनी पार्टी मेें शामिल कर रही है। बसपा आतंरिक संकट से जूझ रही है और उसने अकेले ही चुनावी मैदान में उतरने का फैसला लिया है।
वर्तमान समय में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और भागीदारी संकल्प मोर्चा का गठबंधन कुछ अधिक ही आत्मविश्वास के साथ अपना बड़बोलापन दिखा रहा है और मुंगेरी लाल के हसीन सपने भी देख रहा है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने वर्ष 2017 में बीजेपी के साथ गठबंधन किया था और कुछ सीटों पर सफलता प्राप्त की थी। लेकिन बाद में मुख्यमंत्री के साथ तनाव के बाद ओमप्रकाश राजभर के गुट ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। अब वही बीजेपी के सबसे बड़े दुश्मन बन चुके हैं।
सुहेलदेव राजभर पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने प्रदेश में एक नये गठबंधन फार्मूले को पेश करते हुए कहा है कि मोर्चा एक चुनाव, पांच साल सरकार, पांच मुख्यमंत्री के फार्मूले पर चलेगा। पांच साल में पांच जाति मुस्लिम, राजभर, कुशवाहा, चैहान व पटेल से मुख्यमंत्री बनायेगा। इसके अलावा हर साल चार उपमुख्यमंत्री भी बनाये जायेंगे। उनका कहना है कि अगर मोर्चे की सरकार बनती है तो मोर्चा में शामिल सभी दलों को सीएम व डिप्टी सीएम बनाने का मौका मिलेगा। आंध्र प्रदेश में चार उपमुख्यमंत्री हैं। यूपी में भाजपा व बसपा ने छह-छह महीने का मुख्यमंत्री बनाने की परंपरा शुरू की थी। उसी तर्ज पर हमने भी नया प्रयोग करने का फैसला किया है। एआईएमआईएम भी इस गठबंधन में शामिल है और पार्टी के नेता ओवैसी भी कह रहे हैं कि अगली बार प्रदेश का मुख्यमंत्री कोई मुस्लिम समाज का ही होगा।
ओमप्रकाश राजभर ने जिस गठबंधन फार्मूले का प्रस्ताव पेश किया है वह बहुत ही घातक और प्रदेश के सामाजिक वातावरण में जहर को बोने का ही काम करेगा। पहली बात तो यह है कि ओमप्रकाश राजभर और ओवैशी साहब कें हसीन सपने कभी पूरे नहीं होने जा रहे इन लोगों की भूमिका वोटकटुआ और कुछ सीटों पर हार-जीत का समीकरण बिगाडने की रहेगी।
महाराजा सुहेलदेव राजभर के नाम पर अपनी पार्टी खड़ी कर अपने राजनैतिक एजेंडे को चमकाने का प्रयास कर रहे ओमप्रकाश राजभर की सोच मानसिक विकृति पर आधारित है और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उनमें जिन्ना की आत्मा का प्रवेश हो गया है। अब वह बीजेपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और बीजेपी गठबंधन के सहयोगी निषाद पार्टी पर भी डोरे डाल रहे हैं। जिसका जवाब उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य पहले ही दे चुके हैं। ओमप्रकाश राजभर अति आत्मविश्वास और अहंकार के बल पर जातिवाद और धार्मिक आधार पर बहुत ही गंदा खेल खेलने का प्रयास कर रहे हैं। इस प्रकार के फार्मूले एक तो वर्तमान राजनीति में फिट नहीे बैठतें हैं, वहीं दूसरी ओर इनसे केवल विकास अवरूद्ध हो जायेगा और भ्रष्टाचार को ही बढ़ावा मिलेगा।
दूसरी बात यह है कि ओमप्रकाश राजभर जिस राजा के नाम पर अपनी राजनीति को चमकाने का प्रयास कर रहे हैं वह हैं महान शासक सुहेलदेव राजभर। महाराजा सुहेलदेव ने भारतीय स्वाभिमान, संस्कृति और शाश्वत सनातन मूल्यों की रक्षा के लिए आजीवन संघर्ष किया था। महाराजा सुहेलदेव 11वीं सदी में श्रावस्ती के सम्राट थे और उन्होंने अपने राज्य की सुरक्षा के लिये महमूद गजनवी के भांजे सैयद सालार मसूद गाजी को बहराइच जिले के पास हुई एक जंग में धूल चटा दी थी। अपने समाज की रक्षा के लिए राजा सुहेलदेव ने मुस्लिम आक्रांताओ के साथ जीवनभर संघर्ष किया था। आज उन्हीं महाराज का झंडा लेकर ओमप्रकाश राजभर सरीखे नेता अपने समाज के साथ भयंकर गददारी करने के लिए उतारू हो रहे हैं। महाराज सुहेलदेव राजभर के नाम पर सभी दल वोट मांगते रहे हैं उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि राजभर समाज कम से कम 40 सीटों पर अपना प्रभाव रखता है। कभी यह समाज कांग्रेस के साथ था, लेकिन अब यह समाज कई हिस्सों मे बंटा हुआ है जिसमें 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने सेंध लगा दी थी आर राजभर समाज ने अपना एकमुश्त वोट बीजेपी को दिया था।
बीजेपी के सहयोग से ओमप्रकाश राजभर आठ सीटें जीतने में सफल रहे थे। अब वही राजभर बीजेपी को आंखें दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। सही बात है कि वह मुंगेरी लाल के हसीन सपने ही देख रहे हैं। यह बात बिल्कुल सही है कि महाराज सुहेलदेव को जो सम्मान मिलना चाहिए था वह बीजेपी व संघ की ओर से ही दिया गया है। अन्य सभी दलों ने केवल उनके नाम और उनकी जाति का अपने वोटबैंक के लिए ही इस्तेमाल किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराज सुहेलदेव के लिए स्मारक की आधाररशिला रखी थी और अब वह मूर्तरूप ले रहा है। महाराज सुहेलदेव राजभर ने महमूद गजनी के भांजे को धूल चटा दी, लेकिन अब उनकी चरण वंदना कर वोट पाने वाले ओमप्रकाश राजभर आधुनिक जयचंद बनकर सामने आ रहे हैं और एक मुसलमान को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने का स्वप्न देख रहे है। ओमप्रकाश का यह फार्मूला सम्पूर्ण राजभर समाज का घोर अपमान है। राजभर समाज ही ओमप्रकाश राजभर के फार्मूले को कितना अपनायेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। यह फार्मूला बनाते समय वह यह बात भी भूल गये कि आज भी जब हिंदू समाज पर संकट आता है तो राजभर समाज सहित अन्य सभी जातियां एकजुट होकर उनका मुकाबला करती हैं और वह यह बात भी भूल गये हैं कि मुसलमानों के अत्याचारों को सबसे अधिक छोटी जाति के लोगों ने ही सहा है। आज ओमप्रकाश राजभर राजनैतिक विद्वेष व विरोध की भावना से ग्रसित होकर जिन्नापरस्त राजनीति की शरण में जा रहे हैं। प्रदेश के जनमानस को ऐसे निहित स्वार्थी व गददार मानसिकता वाले दलों व उनके नेताओं से सावधान रहना होगा।
एक ओर जहां देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक भारत व श्रेष्ठ भारत की संकल्पना को साकार करने में लगे हुए है और वह देश की राजनीति को धर्म व जाति पर आधारित राजनीति को समाप्त करने का प्रयास कर रहे हैं उस समय यह जातिवादी और धर्मान्धता पर आधारित दल सिर उठा रहे हैं। ओमप्रकाश राजभर ने मुसलमान को मुख्यमंत्री बनाने की जो बात कही है उसे चुनाव आयोग को भी अभी से ही संज्ञान में लेना चाहिए।
— मृत्युंजय दीक्षित