लघुकथा

तड़प

रात के घिरते धुंधलके में सड़क के एक तीखे मोड़ पर बस तेजी से घूमी और चींऽऽऽ करके रूक गई। ड्राइवर चिल्लाया, “मरने के लिये यही बस मिली है तुम पागलों को?”

“क्या हुआ? क्या हुआ?” शोर उठा।

ड्राइवर बोला, “दूल्हा-दुल्हन के वेश में लड़का-लड़की सड़क के बीच खड़े हैं और बस में चढ़ाने की मिन्नतें कर रहे हैं।”

“तो चढ़ा लो!” कॉलेज पिकनिक टीम के मुख्य बोले।

“चढ़ाना ठीक न होगा सर! इस क्षेत्र में बहुत खतरा है, खासकर दूल्हा-दुल्हन के वेश में लड़का-लड़की!”

“इन्हें इस सुनसान अंधेरी सड़क पर छोड़ना भी ठीक न होगा, चढ़ा लो! हम इतने लोग तो हैं”, छात्रों ने कहा।

बस में चढ़ते ही वे धम्म से बैठ गए। फटे कपड़े और अस्त-व्यस्त हुलिया उनकी स्थिति बयां कर रहे थे। साँसें संयत होते ही उन्होंने अपनी कहानी सुनाई।

“कुछ घंटे पहले बड़ों के आशीर्वाद के साथ हमारा प्रेम-विवाह हुआ। हम शहर में रहते हैं पर शादी ताऊजी की मर्जी से गाँव से हुई”, लड़की ने कहा।

“ब्याह के बाद बुजुर्गों से आशीर्वाद लेते समय मुझसे एक वयोवृद्ध रिश्तेदार ने मेरे स्वर्गीय दादाजी का नाम जानकर विवाह स्थल पर ही हल्ला मचा दिया, ‘अनर्थ हो गया! गोत्र भले अलग हों, खाप एक ही है। दोनों भाई-बहन हुए, शादी रद्द करो!’

दोनों परिवारों में गरमा-गरमी और दोषारोपण प्रारंभ हो गया,जबकि दोनों परिवार एक-दूसरे को भली-भाँति जानते भी न थे। मम्मी-पापा ने अंधेरे की ओट में हमें  निकल जाने को कहा। खेतों के रास्ते हम सड़क तक पहुँचे और बस को रोका। हमारे मोबाइल की बैट्री खत्म हो गई है। कृपया फोन कर हमारे मम्मी-पापा को पुलिस सुरक्षा दिलवाएँ। पापा ने कहा था, ‘स्थानीय पुलिस मिली रहती है। मदद नहीं करेगी।’ कहीं मम्मी-पापा के साथ कुछ अनहोनी न हो जाए”, लड़का बदहवास था।

कॉलेज के युवा छात्र भड़क गए, “यह क्या बकवास है! बस वापस घुमाकर चलो इनके गाँव। किस दुनिया में हैं रहते हैं ये लोग, जंगल राज है क्या?

“वहाँ जाना खतरे से खाली नहीं है, शहर की ओर बढ़ते हुए हमें पुलिस एवं प्रशासन से मदद माँगनी चाहिए। ये लोग कट्टर परंपरावादी हैं, ये दोनों भी पकड़े गए तो बहुत बुरा हो सकता है।

इन लोगों ने कछुए के समान पुरानी और थोथी परंपराओं की भारी-भरकम ठोस चादर ओढ़ रखी है, नई सोच से दूर भागते हैं। इनका उद्देश्य युगों-युगों से चली आ रही जाति आधारित वर्ण व्यवस्था को कायम रखना है। गोत्र और खाप तो एक बहाना है, ये जात के बाहर भी ब्याह नहीं होने देते।”

“सच है, प्रेम-विवाह को बढ़ावा मिला तो जात-पात की दीवारें ढहने लगेंगी। इससे हमारे धर्म गुरुओं तथा धर्म की राजनीति करने वालों का बेड़ा गर्क हो जाएगा। पर यह लड़ाई लंबी चलेगी।”,एक युवक बोला।       बस तीव्र गति से शहर की ओर भागी जा रही थी।

— नीना सिन्हा

नीना सिन्हा

जन्मतिथि : 29 अप्रैल जन्मस्थान : पटना, बिहार शिक्षा- पटना साइंस कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय से जंतु विज्ञान में स्नातकोत्तर। साहित्य संबंधित-पिछले दो वर्षों से देश के समाचार पत्रों एवं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लघुकथायें अनवरत प्रकाशित, जैसे वीणा, कथाबिंब, सोच-विचार पत्रिका, विश्व गाथा पत्रिका- गुजरात, पुरवाई-यूके , प्रणाम पर्यटन, साहित्यांजलि प्रभा- प्रयागराज, डिप्रेस्ड एक्सप्रेस-मथुरा, सुरभि सलोनी- मुंबई, अरण्य वाणी-पलामू,झारखंड, ,आलोक पर्व, सच की दस्तक, प्रखर गूँज साहित्य नामा, संगिनी- गुजरात, समयानुकूल-उत्तर प्रदेश, शबरी - तमिलनाडु, भाग्य दर्पण- लखीमपुर खीरी, मुस्कान पत्रिका- मुंबई, पंखुरी- उत्तराखंड, नव साहित्य त्रिवेणी- कोलकाता, हिंदी अब्राड, हम हिंदुस्तानी-यूएसए, मधुरिमा, रूपायन, साहित्यिक पुनर्नवा भोपाल, पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका, डेली हिंदी मिलाप-हैदराबाद, हरिभूमि-रोहतक, दैनिक भास्कर-सतना, दैनिक जनवाणी- मेरठ, साहित्य सांदीपनि- उज्जैन ,इत्यादि। वर्तमान पता: श्री अशोक कुमार, ई-3/101, अक्षरा स्विस कोर्ट 105-106, नबलिया पारा रोड बारिशा, कोलकाता - 700008 पश्चिम बंगाल ई-मेल : [email protected] व्हाट्सएप नंबर : 6290273367