बिम्ब प्रतिबिम्ब (भाग 5)
लेकिन समस्याएँ तो अब शुरु होने लगीं थीं. दर्शन को कपड़े बदलने में दिक्कत आने लगी. जो बटन वह दायें हाथ से खोलता था, उन्हें अब बायाँ हाथ से खोलने का प्रयास कर रहा था, लेकिन शर्ट और पैंट तो वही पुरानी ही थीं, उनके बटन जिप आदि दर्शन के लिये उलट चुके थे. इसी प्रकार वह बाथरूम में जाने के लिये विपरीत दिशा में जा रहा था. बाथरूम के भीतर जाकर उसे समझ नहीं आ रहा था कि नल खुल क्यों नहीं रहा है, उसने नल और भी कस कर बंद कर दिया था. खाने बैठे तो उसने सहज ही बायें हाथ से खाना शुरू कर दिया. लेकिन उसे ठीक से खाता देख हरमीत को बड़ी तसल्ली हुई.
दर्शन को सोने के लिये कह कर हम तीनों बाहर आकर बैठे. अब हमें आगे की रणनीति पर काम करना था. अभी अगली क्रिकेट शृँखला, जो इंग्लैण्ड में खेली जानी थी, के शुरू होने में पूरे पचहत्तर दिन थे. लेकिन कई समस्याएँ थीं जिनपर हमें काम करना था.
सबसे पहले हमने दर्शन का पासपोर्ट खोने की रिपोर्ट दर्ज की. यही बताया कि दिन भर में हम कई स्थानों पर गये और शायद कहीं पर गिर गया. स्थानीय अखबार में इस आशय का विज्ञापन भी दिया और साथ ही सुपर मार्केट, शेखर के संस्थान तथा कई लोगों से फोन पर पूछा भी. लेकिन, किसी को पासपोर्ट मिलता तब तो हमें खबर मिलती.
दूसरा काम शेखर ने किया, उसने स्थानीय बेसबाल क्लब में दर्शन के अभ्यास के लिये समय बुक कर दिया. हरमीत ने दर्शन की फिटनेस और नियमित अभ्यास का जिम्मा ले लिया, जैसा वे भारत में भी करते ही थे.
सबसे कठिन काम मेरे जिम्मे था. मुझे दर्शन के नये अवतार को इतना सामान्य बनाना था कि वह किसी भी व्यक्ति के सामने अटपटा न लगे. मैंने रात से ही इस पर सोचना शुरू कर दिया.
सवेरे सवेरे, दर्शन को मैंने अखबार पढ़ने को दिया. वह नहीं पढ़ पाया. कारण स्पष्ट था, उसे हर अक्षर उलटा दिखाई दे रहा था. मैंने उसे शीशे के पास बिठाया और शीशे में देख कर अखबार पढ़ने को कहा. दर्शन ने शीघ्रता से पढ़ना आरंभ कर दिया.
अब मैंने उसे अखबार की छोटी छोटी कतरनें दीं, और उन्हें ठीक से जमाने को कहा. दर्शन के सामने शीशा था, वह शीशे में देखता और कतरन को जमाता, थोड़ी देर के अभ्यास में ही उसकी कठिनाई कम हो गयी और वह अच्छी गति से कतरनें जमाने लगा. फिर मैंने उसे अपने कपड़ों को तह करने को कहा, दायें बायें की दिक्कत होने पर उसे शीशे की मदद लेने की अनुमति दी, और दर्शन ने वह भी ठीक से जमाना आरंभ कर दिया.
पहला हफ्ता थोड़ा चुनौती पूर्ण था, लेकिन दर्शन ने बड़ी मेहनत से अभ्यास किया और मोटे तौर पर उसके हाथ सधने लगे. दूसरे हफ्ते के आरंभ होने पर मैंने उसे दायें हाथ से गोला बनाने का अभ्यास करने को कहा. फिर गोले के साथ सीधी रेखा, त्रिभुज और वर्ग बनाने को कहा… अब तक वह अक्षरों को उलटा तो ठीक से पहचानने लगा था, लेकिन उसे लिखने की अनुमति अभी भी नहीं थी. उधर हरमीत ने उसको दौड़ने, कैच पकड़ने, गेंद हिट करने और गेंद फेंकने का अभ्यास पूरी क्षमता से करवाना आरंभ कर दिया.
तीसरे हफ्ते में मैंने दर्शन को हस्ताक्षर करने को कहा. उसने बायें हाथ से जो हस्ताक्षर किये वे उसके मूल हस्ताक्षरों के उलट ही थे. मैंने फिर से एक शीशा उसकी बगल में रखा और इस बार शीशे में देखकर दायें हाथ से हस्ताक्षर करने को कहा. वह थोड़ी कठिनाई से हस्ताक्षर कर तो पाया लेकिन वे उसके पुराने हस्ताक्षर से मिलते नहीं थे. अब मैंने उसी के लिखे कुछ कागज उसे दिये, जिनकी नकल उसे शीशे में देखकर करनी थी. वह जुट गया और दो हफ्तों में उसके हस्ताक्षर भी मिलने लगे.
लेकिन अभी भी कई चुनौतियाँ शेष थीं. मैंने उसकी पुरानी फोटो और ताजी फोटो को एक दूसरे पर रख कर देखा. पहले उसकी दाढ़ी में बायीं ओर के केश थोड़े कम थे, और अब दायीं ओर के केश. हमने दोनों ओर के केश थोड़े थोड़े वैक्स से निकाल दिये. इससे अंतर कम हो गया और जितना था, वह एकदम से ध्यान नहीं खींचता था. साथ ही उसके तिलों को $%$@%@^ द्वारा निकाल दिया और वैसे के वैसे निशान दूसरी ओर बना दिये. अच्छा यही था कि उसके शरीर पर कोई ऐसा चोट का निशान नहीं था जो आसानी से दिखता हो.
इन सभी कामों में हमें काफी समय लग गया और अब भारत लौटना था. वहाँ दर्शन को यो यो टेस्ट देकर अपनी फिटनेस साबित करनी थी. इस बीच दर्शन को अपने पासपोर्ट में बायोमैट्रिक सत्यापन के लिये दूतावास जाना पड़ा. ख्यातनाम क्रिकेटर होने से दूतावास में उसका काम आसानी से हो गया, तथा दूतावास ने उसका वीजा भी नये पासपोर्ट पर हस्तांतरित करवा दिया. इस प्रकार, भारत के बाहर,अमेरिका में, दर्शन को रहस्य खुलने का कोई खतरा नहीं रहा.
हरमीत के दिमाग में कुछ और चल रहा था. वे अभी दर्शन को कुछ समय और अमेरिका में ही रखना चाहते थे और अमेरिका से ही इंग्लैण्ड ले जाना चाहते थे. फिर से उन्होंने अपने संपर्क साधे और उन्हें इसकी अनुमति मिल गयी, लेकिन शर्त यह थी कि इंग्लैण्ड में ही दर्शन को योयो टेस्ट पास करना होगा तथा वह पहला टेस्ट नहीं खेल सकेगा. हरमीत ने मान लिया और मैं वापस भारत के लिये रवाना हो गया…
भारत अपनी समस्त विषमताओं के बावजूद विविधता, अपनेपन और थोड़े पिछड़ेपन युक्त सरलता के कारण बहुत अच्छा स्थान है. दिल्ली हवाईअड्डे पर उतरते ही अपनापन लगता है, जी करता है कि हर भारतीय से गले मिला जाए, लेकिन, इस बार मेरे मन में एक अपराध बोध था, लग रहा था हर आँख जो मेरी ओर देख रही थी उसमें एक सवाल था. लेकिन जब घर पंहुचा और दर्शन की माँ यानि भरजाई जी से मिला तो उनकी आँखों में संतुष्टि के भाव थे, इससे मेरा अपराध बोध कुछ कम हो गया…
भारतीय टीम का इंग्लैंड दौरा आरम्भ हो गया. दर्शन अभी भी अमेरिका में ही था. एजबस्टन में खेले गए पहले मैच में भारत की पारी से हार होने वाली थी लेकिन पुछल्ले बल्लेबाजों ने आखिर तक विकेट नहीं गिरने दिए और एक संभावित हार टाल दी.
मैच के अंतिम दिन दर्शन भी टीम के पास पंहुच गया. टीम के कप्तान के संग दर्शन की पुरानी प्रतिद्वंदिता थी, इसलिए दर्शन को स्टेडियम में भी आने को नहीं कहा गया.. हरमीत और दर्शन दोनों ने तुरंत वाहन पकड़ा और केनिंगटन के लिए चल पड़े, जहां ओवल क्रिकेट मैदान में अगला मैच होना था…
दर्शन ने यो यो टेस्ट पास कर लिया और टीम में कुछ खिलाड़ियों की अनिच्छा के बावजूद भी उसे अंतिम एकादश में सम्मिलित करना ही पड़ा. भारत की टीम ने पहले बल्लेबाजी चुनी और पूरे दो दिन तक बल्लेबाजी कर चार विकेट पर, छ: सौ सत्रह रन बनाए. दर्शन को दो सत्र तक पैड बंधने तक की प्रतीक्षा भी करनी पड़ी और उसने दोनों दिन, पूरी भारतीय पारी, ड्रेसिंग रूम से मैच देखते हुए ही बिताए. वह ऐसा पहले भी करता रहा था, लेकिन अब यह सुकून था कि वह खेलने वाली टीम का हिस्सा था.
अगले दो दिन बरसात हुई, जिस कारण कुल तीन घंटे का ही खेल हुआ. दर्शन को एक भी ओवर फेंकने को नहीं मिला, वह हर बार गेंदबाजी के बदलाव होने पर, डीप पोजीशन से थोड़ा करीब आता लेकिन गेंद उसे नहीं दी जाती.. और अंतिम दिन भी कम प्रकाश, बारिश और मैदान की नमी के कारण खेल नहीं हुआ… दर्शन ने मैच के बाद कप्तान से बात की. कप्तान को पता था कि यह दौरा दर्शन का अंतिम दौरा है, फिर उसे बोर्ड से भी संकेत मिल चुका था, इसलिए उसने दर्शन को अंतिम टेस्ट में रखने का आश्वासन दे दिया…
लॉर्ड्स को क्रिकेट का मक्का यूं ही नहीं कहा जाता. लन्दन के ह्रदय में स्थित लॉर्ड्स का मैदान अपनी भव्यता तथा विशालता के लिए प्रसिद्द है. मैडम तुसाद के म्यूजियम, शर्लोक होम्स के काल्पनिक घर, बेकर स्ट्रीट और इंग्लैंड के राजमहल के पास ही स्थित लॉर्ड्स के मैदान ने कई इतिहास रचे हैं, कई इतिहास बनते देखे हैं और दर्शन भी इसी मैदान से रिटायर होना चाहता था लेकिन इतिहास बनाकर…
मैच में क्या हुआ…. अगले भाग में.
— रंजन माहेश्वरी