ये जिंदगी
कितने किरदार भी निभाती है ये जिंदगी ।
शाह से गुलाम तक बना देती है ये जिंदगी।।
अजीज भी वक़्त पर दुश्मन बन जाते हैं ।
वक़्त की कीमत बता देती है ये जिंदगी ।।
कहते हैं कि पैसा हाथ का मैल होता है ।
पैसे का कमाल भी दिखा देती है जिंदगी।।
घटता बढता खर्च तकलीफ दे तो होता है ।
जमा खर्च की नसीहत देती है ये जिंदगी ।।
कहीं फाका मस्ती कहीं गुलछरे उढ़ाते हैं ।
अमीरी गरीबी का तामजाम है ये जिंदगी।।
रिशतों की फेहरिस्त में तो बहुत से होते हैं ।
अपनों की पहचान करा देती है ये जिंदगी।।
आसमान छूने की तमन्ना तो रखते हैं सभी ।
अच्छे अच्छों को धूल चटा देती है ये जिंदगी ।।
मुकदर का लिखा सबको मिलता है “नाचीज” ।
थाली में पुरसी रोटी भी छीन लेती है ये जिंदगी ।।
— मईनुदीन कोहरी “नाचीज बीकानेरी”