गीतिका
आज के सुख सेज से सहमत नहीं हैं हम।
मुफ्त में मिलती नियामत खुश नही है हम।
कुंद है अहसास दुखदायी वसीयत है-
घास उगती है कहाँ हकुमत नहीं हैं हम।।
पास मेरे क्या रहा गुमनाम जिंदगी।
हास औ परिहास में मतलब नहीं हैं हम।।
प्यास जिह्वा को लगी पर होठ सूखते।
क्यों न कर विश्वास की किशमत नहीं है हम।।
बोलते हैं लोग की कुछ भी नहीं जाया।
धर्म के आधार के नव खत नहीं हैं हम।।
शान से जीता यहाँ औ शान से रहता।
मान अरु सम्मान में गफलत नहीं हैं हम।।
देख ‘गौतम’ देख तो संसार की भाषा।
काम है भगवान का रहमत नहीं हैं हम।।
— महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी