युद्ध
ज्वालामुखी से दहकते शहर
कराते हैं प्रलय का आभास
सभ्यता, संस्कृति, धरोहर सब कुछ तहस – नहस
युद्ध !
सब ध्वस्त …
बसे-बसाए सदियों पुराने
गांव-शहर, गली -मोहल्ले क्षणभर में खंडहर
ये हृदयविदारक दृश्य
एक सभ्य – शांतिप्रिय सभ्यता के लिए
बहुत असहनीय होते हैं ।
युद्ध !
मानवीय सभ्यता के लिए कलंक…
विनाश के मंजर को धरा हमेशा से ही देखती आ रही है
आदमी स्वार्थी बनकर रौंदता रहा है
हमेशा इंसानियत को –
युद्ध !
किसी समस्या का हल नहीं ?
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा