कविता

माँ

माँ,
आज मैं भी
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
का हिस्सा होती.
अपनी बुद्धि और शक्ति से
मैं अपना आसमान बनाती,
तुम्हारे काम में हाथ बंटाती,
पापा की परी कहलाती,
कुल का नाम रोशन करती.
पर मेरे साथ मेरे सपनों की भी
गर्भ में ही हत्या कर दी गई.
माँ, तुम तो नारी थी
तुमने भी मेरी मौत का
विरोध नहीं किया,
बल्कि पुरूष सत्ता के आगे
सदा की भांति घुटने टेक दिए.
मुझे मारने से पहले तुमने
अपने वात्सल्य का गला घोंटा.
तुम तो जननी हो…सृष्टिकर्ता हो
फिर तुमने अपनी ममता को
क्यों बदनाम कर दिया ?
सिर्फ इसलिए कि मैं कन्या थी.
मैं तो शायद तुम्हें माफ कर दूँ
पर ईश्वर तुम्हें
कभी माफ नहीं करेगा
कभी नहीं माफ करेगा….

— विनोद प्रसाद

विनोद प्रसाद

सरस्वती विहार, अम्बेडकर पथ, जगदेव पथ, पटना- 800014 मेल- [email protected]