जितनी प्रतीक्षा
फल उतना ही मीठा
तपती धूप
बरसता पानी
मौसम की फिक्र कहा
प्रतीक्षा एक तपस्या होती
जो सारा दिन और रात
कर लेती अपने पक्ष में
हाथों में रखे फूल
मुरझा जाते
प्रतीक्षा अनवरत क्रम जारी
प्रेम प्रस्फुटित
निखर जाता
नयनों में आंसू लिए
प्रतीक्षा
तुम हमेशा प्रेम का
आवरण पृष्ठ हो।
— संजय वर्मा”दृष्टि”