~नन्ही चिरैया~
“भैया आंखे बंद कर हँसते हो तो कितने अच्छे लगते हो|” गद्गुदी करती हुई परी बोली
भाई खिलखिला पड़ा फिर जोर से| परी भी उन्मुक्त हंसी हंसती रही| दोनों हँसते-हँसते कहा से कहा आ गये थे|
“अरे पापा वह आंटी का घर तो पीछे रह गया|”
“उन्होंने दस बजे तक बुलाया था, आज कन्या खिलाएगी न” परी हँसते हुए बोली|
“अरे मेरी नन्ही चिरैया चिंता ना करो पहुंचा दूँगा, आज खाली हूँ अभी और घुमा दूँ तुम दोनों को|”
“हाँ पापा घुमा दो रिक्शे पर घूमें बहुत दिन हो गये|” बंटी बोला
“और हाँ वही अगल-बगल घरों में ही जाना और कही नहीं जाना मैं दो घंटे में आऊंगा लेने|”
“नहीं जाऊँगी पापा, खूब ढेर सा प्रसाद मम्मी के लिय भी ले लूँगी आंटी से, मम्मी बीमार है न खाना कहा खायी है|”
“और पापा आपके लिए भी”
“चल चल भैया”
दोनों खिलखिलाते हुए चल पड़े उन घरों की ओर जहाँ कन्या जिमाई जा रही थी|
सविता मिश्रा
अच्छी लघुकथा. नवरात्रि पर्व आने वाला है. उसमें ऐसे दृश्य दिखाई देंगे.
saadr नमस्ते भैया ….शुक्रिया
बहुत अच्छी
सादर नमस्ते भैया ….शुक्रिया