लघुकथा – महज़ एक घटना
महेश कमरे में बैठा आराम कर रहा था कि पास बैठी पत्नी मयूरी कहने लगी- बहुत दिन हो गए, हम कहीं घूमने नहीं गए। क्यों न गांव ही चला जाए !उधर से ही मम्मी के घर पर हो आऊंगी, ऐसे तो निकलना होता नहीं।
— ठीक है तुम्हारा मन है तो मै अभी जाकर दो टिकट ट्रेन का करा लेता हू। इतना कह वह आन लाइन टिकट भी करा लिया, और निर्धारित तिथि पर यात्रा के लिए स्टेशन पहुँचा। सब ने रेलगाड़ी में भरपूर आनंद उठाया।
अब रेलगाड़ी स्टेशन पर पहुंचने ही वाली थी कि बगल की पटरी से तीव्र गति से आ रही मालगाड़ी अपने इंजन का आपा खो गई और हमारी रेलगाड़ी से टकरा गई । बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो गई। चारों तरफ कराह की ध्वनि गूंज उठी ।फौरन सरकार ने सहायता मुहैया करवाया, लेकिन दर्जनों, फिर सैकड़ों लाने बिछने में पल भर का भी वक्त ना लगा।
घटनास्थल पर ही बेटे वंश की मृत्यु की खबर, इधर पति बुरी तरह लहूलुहान, मयूरी को हल्की चोट, मानो उस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
एन डी आर एफ की टीमों ने सहायता कर सभी लोगों को अस्पताल की सुविधा प्रदान कराई।
मयूरी अस्पताल पहुंची । उसने फौरन ही माता- पिता तथा सास -ससुर को घटना की सूचना दी। माता- पिता अगली रेल से अस्पताल पहुंचे।
जैसे ही यह खबर सासु मां ने सुना मयूरी पर आग बबूला हो गई, और फौरन बहु को फोन की। मयूरी “मेरी पोती को तो तुमने खा लिया मगर मेरे बेटे को सही सलामत वापस कर देना।”
मां आप ऐसे क्यों बोल रही हो? मैंने जानबूझकर तो यह सब नहीं किया और इस दुर्घटना में सैकड़ों लोग घायल हुए , इसमें मेरा क्या कसूर? इतना कह वह रो पड़ी और फोन रख दी।
मयूरी अपने अथक प्रयासों और डॉक्टरों की सहायता पाकर महेश को पहले वैशाखी और लंबे वक्त के कोशिशों से अपने पैरों पर चलने में समर्थ कर ली।
अब वह पूरी तरह चलने में समर्थ हो गया ।वह अपनी रोजगार के लिए घर वापस आ गया। लेकिन बहू की तरफ उसकी मां का बदला बर्ताव देखकर उससे रहा न गया और एक दिन बोला- ‘मां “मयूरी के कारण ही आज मुझे नया जीवन मिला ।”उसकी प्रयासों के कारण ही आज मैं अपने पैरों पर खड़ा हूं । वरना उस दुर्घटना में तो सैकड़ों की पहचान करने तक की खिदमत नहीं थी । आप वंश के लिए दुखी हो रही हो ,तो शायद उसका साथ ऊपर वाले ने हमारे लिए इतने दिनों तक का ही दिया हो।
इसके लिए मयूरी को क्यों दोष देना ? हम दोनों यदि सुरक्षित रहे और ऊपर वाले ने चाहा, तो दोबारा हम एक वंश ले आएंगे ।
बाकी तो आप लोगों की सेवा में उसने कभी कोई कमी न छोड़ा तो इतना उखड़ापन क्यों?
मां सोचती रही ,और धीरे-धीरे अपने मन के मैल को मिटाकर हंसी- खुशी से रहने लगी……।
— डोली शाह