गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अश्क को झट, से गटक जाने का।
कोई पूछे, तो मुस्कुराने का।
ज़ख्म फिर से,कुरेद ना डाले।
क्या भरोसा,मुए ज़माने का।
दे गया जो,ये ग़म का नज़राना।
सर पे उसके ही,पटक आने का।
जाने दे भाड़ में, सनम झूठा।
सुन बे,फोकट क्यूँ दिल जलाने का।।
हँस के जी ले, है ज़िंदगी तेरी।
बे सबब क्यूँ, इसे गँवाने का।।
राम का नाम ही, सहारा है।
राम का नाम, गुनगुनाने का।।
चार दिन का है किरण,ये जीवन।
दो बचे हैं, तो चहचहाने का।।
— प्रमिला ‘किरण’

प्रमिला 'किरण'

इटारसी, मध्य प्रदेश