कविता

पाञ्चजन्य का नाद

तंद्रा को त्याग भारत के लाल

हे विशालाक्ष! द्विभुज विशाल । 

अरिदल का समूल संहार करो

तुम जागो भीषण हुंकार भरो 

पाञ्चजन्य का नाद है तुमसे

देवदत्त सम अनुनाद है तुमसे 

अनंतविजय निनाद तुम्ही हो

विशाल पौंड्र निर्बाध तुम्ही हो 

तुम रणवीरों जयघोष करो अब

सशक्तिसम नाद सुघोष करो अब 

हिरण्यगर्भ विदारक गर्जन है

माद्री सुत मणिपुष्पक तर्जन है 

है आर्यश्रेष्ठ, है कुरुश्रेष्ठ!

आदेश कीजिए भ्रातज्येष्ठ 

दुर्धर्ष अक्षय सम्मुख खड़ा है

हरने को प्राण हठ पर अड़ा है 

स्पृहा जागती नितंत हृदय में

समय शेष है सूर्योदय में 

इतिहास रच दो रक्त मसि से

उद्भासित कर दो रण असि से 

है कौन्तेय आर्यपुत्र महाभाग !

तज मोहमाया निंद्रा को त्याग 

सत्य का आज संविधान करो

पाशुपत गांडीव  संधान करो 

सत्सारथी न अब अवकाश करो

अन्याय का समूल विनाश करो 

समत्वभाव वीर कर्म यही है

पा विजय मृत्यु पर धर्म यही है 

पातक पायेगा अवनति को आज

भारत विराजित उन्नति को आज 

मत्सर छाया कुरु दल पर आज

हावी हुआ है सत बल पर काज 

है पार्थ, परन्तप! हो यदि मुमुक्षु

अब उद्घाटित कर दो ज्ञान चक्षु 

सुनकर आर्यवीर उत्साह खड़ा

स्थितप्रज्ञ सहर्ष संग्राम लड़ा 

भस्मी हुआ समर में कुल कौरव

युयुत्सु छोड़ पाए नरक रौरव

— राम पंचाल भारतीय

राम पंचाल भारतीय

पांचलवासा, जिला बांसवाड़ा (राजस्थान) मो. 9602433448 Email : [email protected]