कहानी

गद्दार

यह कहानी उन दिनों की है, जब विदेश से आए हुए फिरंगियों ने आजाद भारत को गुलाम बना लिया था। अंग्रजों द्वारा भारत देश पर राज करने के कारण हम भारतीयों को गोरी सरकार के अनावश्यक जोर-जुल्म बर्दाश्त करने पड़ते थे। ऐसी दुखदाई परिस्थितियों में तीन जिगरी दोस्त रमेश, महेश,और सुरेश इन तीनों ने सिसकती भारत माँ को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करवाने की शपथ उठाई।

तब निष्कपट और सीधे-साधी भारतीय जनता अंग्रेजों के दुष्कर्म और अत्याचार सहने के लिए बेबस और मजबूर थी। अंग्रेजों के भारतीयों पर किए जा रहे अत्याचारों को देखकर मातृभूमि से प्रेम करने वाले भारत माँ इन तीनों वीर सपूतों की आत्मा रो उठती थी। वह भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करवाने के लिए सरकार से छिप-छिपा कर क्रांतिकारी संगठन बनाकर निरंतर आजादी मिलने के लिए प्रयास कर रहे थे। ऐसे यह तीनों वीर महापुरूष अपनी मातृभूमि के प्रेम रंग में रंगें भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पित भाव से ओत-प्रोत थे। इनके दिलों में देश भक्ति का जज्बा कूट-कूट कर भरा था। ऐसे क्रांतिकारी भाव से भरे ये तीनों मित्र किसी भी कीमत पर भारत को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने के लिए कृत-संकल्पित थे।

अंग्रेजों की नौकरी करने वाले इन तीनों दोस्तों के माता-पिता को जब पता चला कि उनके पुत्र क्रांतिकारी संगठन में शामिल हो गए हैं। तो उन्होंने साम-दाम, दण्ड-भेद की नीति अपनाकर उन्हें क्रांतिकारी रास्ते से वापस लाने का प्रयास किया। सुरेश के पिताजी ने अपने लाड़ले बेटे को समझाते हुए कहा– ‘सुनो बेटा..इस क्रांतिकारी संगठन से कुछ नहीं होने वाला है। हम इस सरकार की नौकरी करते हैं। इसी से हमारा परिवार पलता है। अतः अभी चुपचाप आकर घर में बैठो क्यों ख्वामखाह जवानी की उमर बरबाद करने पर तुले हो? चलो तुम्हारा विवाह करवाए देते हैं। विवाह के बाद तुम्हें नून, तेल,लकड़ी की असली कीमत पता चलेगी। तुम्हारी शादी के लिए लड़की वालों से बातचीत चल रही है। अतः घर आकर अपनी गृहस्थी और जिम्मेदारी सँभालों।’

पिताजी की बातें सुनकर सुरेश ने निडर होकर जबाव दिया– ‘हम क्षमा चाहतें हैं पिताजी..! हमसे विवाह न हो सकेगा..। जिस मातृभूमि पर जन्म लेकर हम पले- बढे हैं। जिसके अन्न-जल से हमारे शरीर का पोषण हुआ है। जिसका अन्न जल ग्रहण कर हमारी नसों में रक्त दौड़ता है। अपनी उस भारत माता को आजाद कराने की हमने कसम खाई है। अतः सबसे पहले हमारा कर्तव्य हमें पुकार रहा है। पिताजी..! आप हमारे समर्पित जीवन में बाधा मत बनिए। आप हमें बस ख़ुशी-ख़ुशी विदा कीजिए।’ ऐसा कहकर सुरेश ने पिताजी के चरण स्पर्श किए और रात के अँधेरे में बाहर निकल कर गुम हो गया।

आजादी के दीवानों द्वारा चलाए जा रहे अनेक क्रांतिकारी संगठन हर हाल में गुलाम भारत की तस्वीर बदलने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे थे। सुख-शांति, समृद्धि और अमन-चैन से जीने के जोशपूर्ण भाषण और ओज प्रधान वीर रस की कविताएं सुनकर इन तीनों दोस्तों का जोशीला जुनून जागने लगता। माता-पिता की चेतावनी के बाबजूद ये तीनों अपने जज्बातों पर काबू नहीं रख सकें और क्रांतिकारी संगठन के लिए खुशी-खुशी दिन-रात काम करने में लग गए।

इन तीनों ने मिलकर क्रांतिकारियों द्वारा संगठन का काम करते हुए अंग्रेज अधिकारियों की हत्या करने और खजाना लूटने जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं को अंजाम दिया। धीरे-धीरे इन वीर भारतीय सपूतों द्वारा अग्रेजों की नाक में नकेल कसने का प्रयत्न किया जाने लगा। अब जनमानस के हृदय में आजाद भारत की तस्वीर नजर आने लगी। निरंतर घटने वाली क्रांतिकारी घटनाओं के कारण अंग्रेजों को भारत से बाहर खदेड़ने की देशभक्त वीरों के दिल में भरपूर कुलबुलाहट होने लगी। इन क्रांतिकारियों का साथ देने के लिए देशभक्त भारतीय युवा मोर्चा द्वारा अन्न- धन के भण्डार खोल दिए गए। क्रांतिकारियों के अथक प्रयासों द्वारा जनमानस में देशभक्ति का जज्बा जागने लगा।अब प्रभात फेरी निकालकर और देशप्रेम के जोश भरे गीत गाकर बच्चा-बच्चा गली-मौहल्लों में आजादी की अलख जगाने लगा।

अतः अब जब किसी भारतीय के साथ अप्रिय घटना घटती तो आक्रोश और चारों ओर क्रोध की ज्वाला फड़कने लगती। नवजवानों के रक्त में उबाल आता तो अंग्रेजों से बदला लेने के लिए उनकी भुजाएं फड़कने लगती। संगठन में युवाओं के शामिल होने का सिलसिला जारी था। देश के क्रांतिकारी संगठन के साथ इनके मिलकर काम करने से परिवर्तन की लहर उमड़ने लगी। इन लोगों की देखा-देखी अब जगह-जगह पर क्रांतिकारी संगठन बनाए जा रहे थे। जहाँ महिलाओं ने रुपये-पैसे, धन, जेवर, गहने आदि के द्वारा क्रांतिकारी भाइयों को सहायता देने की मुहिम चला रखी थी।

एक रात संगठन ने इन तीनों साथियों को एक रेल में लाए जा रहे खजाने को लूटने जैसी घटना को अंजाम देने का काम सौंपा था। इनके समूह में शामिल होकर विश्वास पात्र बनने का ढोंग रचने वाले गद्दार नवीन सदस्य ने सारी गुप्त सूचनाएँ गोरी सरकार तक पहुँचा दी। उस वक्त घटना को अंजाम देने से पहले ही गोरी सरकार की पुलिस ने इन तीनों को चारों ओर से घेर लिया। चारों ओर से खुद को घिरा देखकर और अपने बचने का कोई रास्ता न देखकर इन तीनों ने हम जीते जी मर जाएंगे मगर गोरी सरकार के हाथ नहीं आएंगे।” ऐसा कहकर आत्मसमर्पण करने के बजाए खुद को गोली मारना अधिक उचित समझा। उस दिन भारत माता की जय बोलते हुए इन तीनों देशभक्त वीरों ने हँसते-हँसते अपने प्राणों का बलिदान कर दिया।
जनता के मन में नवीन के खिलाफ निरंतर आक्रोश बढ़ता जा रहा था। अपने ही भाइयों से गद्दारी करने वालें नवीन जैसे गद्दार लोगों को तो सच में सरेआम फाँसी लगनी चाहिए। अतः उन तीनों दोस्तों का हिसाब जल्दी ही प्रकृति ने चुकता कर दिया। उसके द्वारा किए कर्म की ऐसी सजा सुनाई। कि एक दिन शहर में आने वाले भूकंप में दबकर वह अपने घर में मृत पाया गया।

— सीमा गर्ग मंजरी

सीमा गर्ग मंजरी

मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश से वरिष्ठ कवयित्री एवं लेखिका