पवन
उडा न पवन
खुशबुओं को इस तरह
मोहब्बतें भी रूठ जाएगी
बेमौसम के पतझड़ की तरह
कुछ याद रहेगी खुशबुओं की
जब तक रहेगी
धड़कन से सांसों की तरह
तोड़ लेता कोई जैसे
अपने रूठे को मनाने की तरह
छीन ले जाता कोई खुश्बू
बस इस बात का तो रोना है।
— संजय वर्मा ‘दॄष्टि ‘