कविता

अपशिष्ट

कल तक जो विशिष्ट था

वह अब अपशिष्ट है

उसका न कोई परिशिष्ट है

वह छोड़ दिया गया है

लावारिश सा…? 

घर के किसी कोने में या आसपास

खुली सड़क या फिर मैदान में 

कल वह ! कचरा बन जाएगा 

अपनों से जो छूट जाता है

वह गैरों से भी रूठ जाता है…?

लोग उसे अर्थहींन समझते हैं

कचरे की माफ़ीक ?

वह कबाड़ बन जाएगा

कबाड़ी को बिक जाएगा

या फिर कूड़ा बन जाएगा

हाँ ! वहीं विशिष्ट 

कल अपशिष्ट बन जाएगा

शायद ! यहीं नियति है ?!! समाप्त !!

— प्रभुनाथ शुक्ल

प्रभुनाथ शुक्ल

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और समीक्षक ग्राम : हरीपुर, पत्रालय : अभिया जिला : भदोही, (उप्र) पिन : 221404 Email Id: [email protected] संपर्क : 8924005444/ 9450254645