बाल कहानी : बड़प्पन
उमरादाह वन में चुनाव सम्पन्न हुआ। इस बार अरण्य ध्वज पार्टी को बहुमत प्राप्त हुआ। पिछले तीन वर्षों से सत्ता में रह रही पार्टी कानन स्वराज दल को पराजय का मुँह देखना पड़ा। विजयी पार्टी प्रमुख गजेश हाथी के उमरादाह वन के नये मुख्यमंत्री बनने की सम्भावना बहुत ज्यादा थी। कुछ दिनों पश्चात सबका कयास सच निकला। गजेश जी के नये मुख्यमंत्री बनने पर सारा जंगल फुला नहीं समा रहा था।
राज्यपाल जबर जेब्रा ने गजराज गजेश जी को मुख्यमंत्री की शपथ दिलवाई। फिर सत्ता में आई अरण्य ध्वज पार्टी ने अपने मंत्रिमंडल का गठन किया। चतुरा लोमड़ ने गृहमंत्री का पद सम्भाला। कैमल ऊँटनी को वित्तीय प्रभार दिया गया। हिन्नी हिरणी विदेशमंत्री बने। शेरसिंह को रक्षामंत्री बनाया गया। लल्लन लकड़बग्घा को स्वास्थ्य प्रभाग मिला। खग्गू खरगोश शिक्षामंत्री का पद पाकर संतुष्ट व खुश था। इसी तरह बिट्टू बंदर, भालू भल्ला, भैरव भेड़िया, सिंघू बारहसिंघा, जैरी जिराफ जैसे अन्य वन्यपशु मंत्रिमंडल में शामिल हुए।
अरण्य ध्वज पार्टी की सरकार बने लगभग दो साल पूरे हो गये। मंत्रीगण मुख्यमंत्री गजेश जी के आदेशों का सहर्ष पालन करते थे। गजेश जी के सरल-सहज व्यवहार मिलनसारिता सबको पसंद थी। वे समस्त वन्य पशुओं का ख्याल तो रखते ही थे; साथ ही अपने मंत्रियों के भी बड़े हितैषी थे। अतएव समस्त वन्यपशुओं के हृदय में उनका एकछत्र राज्य था।
एक बार की बात है। ठण्ड का मौसम था। उमरादाह वन कड़ाके की ठण्ड के चपेट में आ गया। चूँकि वन के दक्षिण दिशा में सिवनी नामक नदी बहती थी; सो नदी से उठने वाली ठण्डी हवाओं की वजह से आसपास के क्षेत्रों में बहुत ही ज्यादा ठण्ड पड़ने लगी। वैसे वह क्षेत्र मूलतः खरगोशों का ही निवास स्थान था। वह स्थान उन्हें भा गया था, क्योंकि नदी किनारे उगने वाली घास दूब खरगोशों का मनपसंद भोजन था। वे वहाँ बहुत खुश थे। पर इस बार देह कँपकँपाने वाली सर्द हवाएँ खरगोशों के लिए जानलेवा साबित होने लगी थी। वे बीमार पड़ने लगे। उनकी स्थिति बद से बदत्तर होने लगी। इस तरह उमरादाह वन का समूचा दक्षिणी क्षेत्र निमोनिया के चपेट में आ गया। यह खबर देखते ही देखते पूरे उमरादाह वन में जंगल की आग की तरह फैल गयी।
दक्षिणी क्षेत्र के खरगोशों में फैली निमोनिया बीमारी का समाचार स्वास्थ्य विभाग को पता चला। अब इस बात की भनक स्वास्थ्य मंत्री लल्लन लकड़बग्घा को भी लग गयी। फिर वे तुरंत अपने सहयोगी व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी व कर्मचारी के साथ वन के दक्षिणी क्षेत्र की ओर रवाना हुए। पूरी स्वास्थ्य टीम शासकीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र – गुरूर पहुँची।
स्वास्थ्य मंत्री लल्लन जी सीधे रैबिट वार्ड पहुँचे। सभी बीमार खरगोशों की स्वास्थ्य सम्बंधी जानकारी लेने लगे। जैसे ही वे एक बूढ़े खरगोश का हालचाल जानने के बाद आगे बढ़ रहे थे कि उन्हें एक युवा खरगोश राशु की रोने की आवाज सुनाई दी। लल्लन जी ने उनके पास जाकर रोने का कारण पूछा, तब राशु खरगोश ने बताया- “मुझे बचा लो मंत्री साहब। मैं मरना नहीं चाहता। घर में मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं। उनकी माँ नहीं है। अगर मैं भी चला गया तो वे अनाथ हो जाएँगे।” लल्लन जी ढाँढस बँधाते हुए बोले- “घबराइए मत भैया। आप ठीक हो जाएँगे। देखिए न, ये बड़े-बड़े डॉक्टर आप लोगों के ट्रीटमेंट में लगे हुए हैं। पूरी स्वास्थ्य टीम लगी हुई है। यहाँ किसी को भी कुछ नहीं होगा। राशु जी, ये शारीरिक अस्वस्थता नदी की बाढ़ की तरह होती है। आती है तो अचानक और बड़ी तेजी से; और यह उतरती धीरे, पर उतरती जरूर है। इसलिए बिल्कुल निश्चिंत रहिए। सब ठीक होगा।”
लल्लन जी पूरे रैबिट वार्ड की ओर अपनी नजर दौड़ाने लगे। उन्होंने देखा कि सभी डॉक्टर, नर्स व अन्य कर्मचारी इलाज में लगे हुए हैं। वे आगे बढ़ ही रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि एक माँ अपने शरीर से अपने बच्चे को ढँक रही है। कभी वह उसे जीभ से चाटती, तो कभी अपनी पूँछ से सहलाती। लल्लन जी ने खरगोश माँ से पूछा- “क्या नाम है बहनजी आपका ? “
“गिशी। ” माँ खरगोश उठकर बैठी।
“और इस छोटू का ?” लल्लन जी ने उसके बच्चे पर बड़े प्यार से उंगलियाँ चलाई।
“खगेश।” गिशी खरगोश ने मुस्कुराते हुए कहा।
“क्या हुआ है इसे ?” लल्लन जी ने बच्चे के बारे में जानना चाहा।
“बहुत सर्दी है इसे।” गिशी खगेश के कान को अपनी पूँछ से ढँकती हुई बोली।
फिर लल्लन जी बोले- “बिल्कुल चिंता मत करना बहन। तुम्हारा खगेश जल्दी ठीक हो जाएगा। यहाँ से आप दोनों माँ-बेटे हँसते-मुस्कुराते हुए अपने घर जाएँगे।” फिर लल्लन जी रैबिट वार्ड के मरीजों के शीघ्र स्वास्थ्य की कामना करते हुए लकड़बग्घा वार्ड की ओर गये।
लल्लन जी के लकड़बग्घा वार्ड पहुँचते ही डॉ. लक्की लकड़बग्घा ने उन्हें अकेले में उम्रदराज लालू लकड़बग्घा के बारे में बताया कि इस पर उम्र का असर है। यह दो-तीन बीमारियों से पीड़ित है।” डॉ. लक्की कुछ और बता ही रहे थे कि लल्लन जी ने पूछा- “फिलहाल इनका इलाज कैसे किया जा सकता है ?”
डॉ. लक्की बोले- “इनके कुछ अंग ठीक से काम भी नहीं कर रहे हैं। फिलहाल तो इन्हें खून की जरूरत है। इनके शरीर में बहुत ही कम खून रह गया है, और अपने पास ब्लड बैंक में इनके ब्लडग्रुप का खून भी उपलब्ध नहीं है। ब्लड डोनेट करने वाले भी नहीं है। खून की व्यवस्था नहीं हुई तो इनकी जान को खतरा है।”
डॉ. लक्की के बात खत्म होते ही लल्लन जी ने लालू लकड़बग्घे की ओर देखा। बोले- “डॉक्टर लक्की जी, मैं दूँगा लालू जी को खून। आप मेरा खून टेस्ट कर लीजिए। प्लीज़। हरि-अप्।” स्वास्थ्य मंत्री लल्लन जी की बातें सुनकर वार्ड में उपस्थित सभी लकड़बग्घों के चेहरे पर मुस्कान पसर गयी।
— टीकेश्वर सिन्हा ” गब्दीवाला “