तेरे होने का वहम
और कोई ग़म फिर ग़म न लगा,
इक तेरे जाने के ग़म के बाद।
बैठे हैं मुँह फेर के सच्चाइयों से,
तेरे होने के इस वहम के बाद।
ताक़त ये सहने की खत्म होने को है,
टूट जाऊंगा शायद इस सितम के बाद।
रहने दो ज़िन्दा यादों के सहारे,
मौत, तू आना इस भरम के बाद।
किसी और को चाहूँ, मुमकिन ही नहीं,
मोहब्बत ही छोड़ आए उस सनम के बाद।
— मुकेश जोशी ‘भारद्वाज’