ग़ज़ल
ख्वाबों की बस्ती में जाना होता है
दुनिया से कुछ वक्त चुराना होता है
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तुमसे ही तो अपनी दुनिया है रोशन
तुम हो तो हर वक्त सुहाना होता है
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दिल पर दर्द के बादल छाए हों फिर भी
अपनों की खातिर मुस्काना होता है
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रिश्तों में अपनापन कायम रखने को
खुद को थोड़ा सा समझाना होता है
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दौलत, शौहरत यूँ ही कब हासिल होती
खून पसीना रोज बहाना होता है
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जीवन को आसान बनाने की खातिर
बीती बातों को बिसराना होता है
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उम्मीदों की कोंपल उग आएगी पर
उसके पहले पतझड़ आना होता है
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जिनसे दिल का रिश्ता है उनमें अक्सर
रोज रूठना रोज मनाना होता है
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— रमा प्रवीर वर्मा