निगाहें आसमान की ओर
राँची षहर खुष-मिज़ाज मौसम के लिए जाना जाता है। जेठ मास की अंतिम सप्ताह तक बारिश न होने के कारण आधे से अधिक बोरिंग सूख गया। सोसाइटी वाले बोरिंग तत्काल खोदवा लेते हैं। बोरिंग गाड़ी रात-दिन बोरिंग खोदता रहा। पर एक के बाद एक बोरिंग सूखता गया। सोसाइटी वालों के साथ-साथ कुछेक मकान मालिक भी बोरिंग खोदवाते हैं। षहरवासी पानी के लिए तीन बजे रात से ही पानी के जुगाड़ में लग जाते हैं। पीने का पानी लेने के लिए लाइन में घंटों इंतजार करना पड़ता है। आषाढ़ मास का प्रथम सप्ताह समाप्त हो चला, लेकिन बारिष न होने के कारण अधिकांष पानी बेचने वालों के बोरिंग में पानी नहीं है। पानीवाला बीस लीटर पानी की कीमत दस रुपया से बीस रुपया कर दिया है। किसी ग्राहक द्वारा पानी भरते समय थोड़ा-सा गिर जाने पर पानीवाला कहता है, ‘‘आप लोग पानी बर्बाद कर रहे हैं। आज रात भर बोरिंग चालू रखा, फिर भी टंकी नहीं भरा है। मेरा टंकी एक घंटा में भरता था। हो सकता है, आज बारह बजे से पहले ही दुकान बंद करना पड़ेगा।’’
लाइन में खड़ा हिमांषु कहता है, ‘‘इस बार सब का बोरिंग सूखने लगा है। मेरा मालिक का एक माह से टंकी में पानी नहीं चढ़ता है। चार दिन से एक बाल्टी पानी नहीं आता है।’’
‘‘आपके मकान मालिक को दूसरा बोरिंग खोदवाने के लिए नहीं बोले।’’ चमनदीप कहता है।
‘‘नया बोरिंग खोदने की बात तो दूर की है। बोरिंग नीचे उतारने के लिए कहने पर कहता है। अखबार में लिख रहा है। एक-दो दिन में पानी पड़ने वाला है। यही एक माह से बोलता आ रहा है।’’ हिमांषु
‘‘मेरे बगल वाले के वहाँ भी एक माह से बोरिंग में पानी नहीं आता है। उनके वहाँ भी बहुत किरायेदार हैं। कुछ किरायेदार खाली करके दूसरे जगह चले गये। जो हैं, वह आपकी तरह यहाँ-वहाँ से पानी लाते हैं। उनका मकान मालिक सुबह-षाम आस भरी निगाहों से आसमान की ओर देखकर कहता है। लग रहा है, एक-दो दिन के अंदर पानी आ सकता है। बहुत उमस है। आकाष में बादल भी बन रहा है।’’ अमूल कहता है।
‘‘मेरा मकान मालिक भी एक महीना से यही कहता है। आज बहुत उमस है। देखिए! आसमान में आज सुबह से ही काले-काले बादल बन रहे हंै।’’ हिमांषु
मकान मालिक नंदलाल इनकी बातों को सुनकर पड़ोसी रघुवीर अहीर को कहता है, ‘‘मैंने तो किरायेदार को साफ कह दिया है। पानी की व्यवस्था अपने से करो! या रूम खाली करके चले जाओ! बोरिंग खोदवाने से एक लाख का खर्च आयेगा। वह कौन देगा? आपलोग तो दीजियेगा नहीं। ऐसे भी मौसम विभाग के अनुसार दो दिन के बाद माॅनसून आने ही वाला है।’’
‘‘ठीक कहा आपने। मेरा किरायेदार टेंकर माँगवा दीजिए, नहीं तो पैसा कम देंगे, कहने लगे। तब मैंने टेंकर माँगवाने के लिए बात भी की। लेकिन एक टेंकर का दो हजार बोला तो मैंने माना कर दिया। आज मैंने भी कह दिया है। रहना है तो एक-दो बाल्टी मिल रहा है। उसी में काम चलाओ! वरना खाली करके चले जाओ!’’ रघुवीर अहीर कहता है।
‘‘अरे यार! किरायेदार पैसा देता है तो समझता है कि मकान मालिक को ही खरीद लिया हूँ। आज सुबह मेरा बोरिंग से पानी नहीं निकला तो एक किरायेदार बाल्टी लेकर आया और पानी दीजिए! पानी दीजिए! बोलकर चिल्लाने लगा। तब मैं भी तुरंत खाली करने का आदेष दे दिया। साला! जाए तो कहाँ जायेगा? आस-पास लगभग के घरों और सोसाइटी में पानी की किल्लत है।’’ मकान मालिक छोटू सेठ कहता है।
‘‘देखो छोटू! ये तुम भी जानते हो और मैं भी जानता हूँ। हमलोगों के यहाँ दो महीना किरायेदार नहीं रहेगा तो खाना नसीब नहीं होगा। इसलिए कुछ भी बोलो! धीरे से बोलो! षांतिपूर्वक बोलो! मैं तो किरायेदार के कहने से पहले ही आसमान की ओर देखकर कहता हूँ। आज या कल पानी आने की संभावना लग रहा है। इधर-उधर पानी पड़ना षुरू हो गया है। देखो! इधर कब तक आता है। पानी आने के बाद तो दिक्कत नहीं होगी। किसी तरह दो-चार दिन काम चलाओ!’’ नीलेष लाॅज का मालिक कहता है।
चारों मकान मालिक के चले जाने के बाद चमनदीप कहता है, ‘‘अरे भाई! मकान मालिक को केवल पैसा चाहिए। हम सब से केवल इनका पैसा का संबंध है। एक महीना समय से पैसा ना दो। फिर खाली करने का आदेष दे देते हैं। ये क्या? खाक पानी की व्यवस्था करेंगे। सुबह दो बाल्टी पानी दे देते हैं। फिर आप उसमें खाना बनाओ, स्नान करो, कपड़ा धो या जो करना है करो। वह नहीं जानता है।’’
‘‘ये सिर्फ पैसा से प्यार करते हैं। इनमें मानवीयता है ही नहीं।’’ हिमांषु
‘‘बिल्कुल! षहर के लोगों के हृदय से मानवता मर चुका है।’’ चमनदीप
लाइन में खड़ा साठ साल का वृद्ध कहता है, ‘‘यहाँ नौकरी करते तीस साल हो गया। लेकिन इस साल जैसा कभी पानी की दिक्कत नहीं हुई थी। इस बार की गरमी बहुत ज्यादा है। पता नहीं जून का चैबीस तारीख हो गया। लेकिन पानी पड़ ही नहीं रहा है।’’
‘‘चाचा, बारिष कैसे होगी? षहर में कितने पेड़ थे। वे सब विकास के नाम पर काटे गये। और षहर के बीचो-बीच कितना दलदल खेत था। जिसमें जेठ माह में भी पानी रहता था। उस खेत में बड़ी-बड़ी सोसाइटी बन गयी। अब आप ही बताये कि चालीस डिग्री सेल्सियस से भी तापमान बढ़ेगा या नहीं। बोरिंग सूखेगा या नहीं।’’ अमूल कहता है।
‘‘भाई, आप ठीक बोल रहे हैं। षहरवासी बारिष होने पर काम-काज में रूकावट समझते हैं। कीचड़ में पैर रखना पसंद नहीं करते। इसीलिए आँगन से सड़क तक पक्का कर दिया है। सरकार भी नाली पक्की बनवा दी। अब घर का और बारिष का पानी सीधे नाली से षहर के बाहर चला जाता है। हर घर और सोसाइटी में वाॅटर हार्वेस्टिंग होना आवष्यक है। वरना तीसरा विष्व युद्ध पानी पर होना तय है।’’ हिमांषु
‘‘मैं गोपाल सोसाइटी में रहता हूँ। एक बोरिंग सूख जाने के बाद दूसरा बोरिंग अप्रैल में खोदवाया गया था। वह भी सूख गया। दो दिन पहले फिर खोदवाये हैं। उसमें भी बहुत कम पानी आ रहा है। सुबह और षाम केवल पानी मिलता है। बाल्टी में भर के काम चलाना पड़ रहा है।’’ गोपाल सोसाइटी का व्यक्ति कहता है।
‘‘पूरे षहर में पानी की किल्लत हो गयी है। अब बारिष नहीं हुई तो बहुत मुष्किल है।’’ अमूल
‘‘मैं तो आसमान की ओर देखकर प्रतिदिन भगवान से विनती करता हूँ। हे सफेद-सफेद बादल! तू काले-काले बादल में परिवर्तित होकर, खूब उमड़ो-घुमड़ो और गर्जन के साथ बरसो! हे जीवन के आधार!’’ हिमांषु
‘‘आप ही नहीं, यहाँ के सभी लोग आसमान की ओर दुख भरी निगाहों में देखकर विनती करते हैं। हे ईष्वर! हम पर कृपा कीजिए। जल के बिना जीवन अपूर्ण है। और एक सप्ताह पानी नहीं पड़ा तो पृथ्वीवासी पानी के लिए तड़प-तड़पकर मर जायेंगे। हे काले-काले बादल! अब तो बरसो!…….’’ चमनदीप
‘‘हाँ, हाँ, सभी की निगाहें आसमान की ओर है।’’ लाइन में खड़े सभी लोग कहते हैं।
.. डाॅ. मृत्युंजय कोईरी