पर्यावरण

फर्ज़ समझकर हर एक प्राणी पीपल बरगद नीम लगाएं

प्रकृति और मानव एक दूसरे के पूरक हैं। हमने प्रकृति को नहीं प्रकृति ने हमें बनाया है। क्या आप जानते हैं? ऑक्सीजन के अभाव में सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणें हमारी त्वचा को जाला देगी। क्योंकि इन किरणों को ओजोन परत रोकती है। जो ऑक्सीजन की तीन परमाणु से मिलकर बनी होती है। हमारे शरीर में 70% जल होता है, जो ऑक्सीजन के अभाव में हाइड्रोजन गैस में परिवर्तन हो जाएगा। धरती विनाशकारी प्रलय के रूप में फट जाएगी क्योंकि 46% ऑक्सीजन से धरती में मिट्टी के कण आपस में बंधे होते हैं, ऑक्सीजन के अभाव में धरती फट जाएगी हमारा पर्यावरण हमारे चारों ओर विद्यमान है। और ह हमारी जीवन शैली एवं विकास की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। प्रत्येक जीव और पर्यावरण के बीच में एक अटूट संबंध है। बिना जीवों के पर्यावरण का निर्माण नहीं हो सकता। हम जो छोड़ते हैं, उसे पेड़ पौधे ग्रहण करते हैं ।और जो पेड़ पौधे छोड़ते हैं, उसे हम ग्रहण करते हैं। जल, जंगल, ज़मीन से ही जीवन है। पेड़ पौधों का जीव जंतुओं से बहुत आत्मिक जुड़ाव होता है। दोनों एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। हर पेड़ हर जीव की इस पृथ्वी पर अहमियत है। सब किसी न किसी खाद्य श्रृंखला से जुड़े हैं। जिसमें पौधे उत्पादक होते हैं, और जीव उपभोक्ता हर रोज़ कहीं ना कहीं किसी एक प्रजाति का जीव विलुप्त होता जा रहा है। इसका सीधा असर उनकी खाद्य श्रृंखला पर पड़ता है प्रगति के नाम पर पेड़ों की ऐसी दुर्दशा की जाती है, कि हरियाली का नाम और निशान मिटा दिया गया है।

हमें चाहिए था डेवलपमेंट बड़ी-बड़ी गाड़ियां, बिल्डिंग, मॉल तो माल तो बन गए बिल्डिंग भी हैं , डेवलपमेंट के चक्कर में हमने जंगल काट डाले शहर डेवलप हो गए आज 45 , 46 टेंपरेचर है,तो इतनी गर्मी पड़ रही है। यही टेंपरेचर जब 56, 57 होगा तब इंसान जीवित ही नहीं बचेगा। आजकल की गर्मी ऐसी लगती है, कि आग का दरिया और तैर कर जाना तपिश में पत्थर जैसे ठोस दिमाग वालों के दिमाग भी पिघलते जा रहे हैं इस धरती पर 500 से 600 करोड़ पौधों की जरूरत है। पौधों को बड़े होने में भी चार से पांच साल का समय लगता है आजकल हम अपनी छुट्टियों का सारा दिन टीवी, न्यूज़ पेपर, कंप्यूटर, खेल और मोबाइल में व्यतीत करते हैं। हम भूल जाते हैं, कि दरवाजे के बाहर प्रकृति की गोद में बहुत कुछ रोचक है। प्रकृति के जंगल कम हो गए हैं, कंक्रीट बढ़ गए इमारतें बेशुमार हैं। पर छाया देने वाले पेड़ क्यों काम है? लाखों करोड़ों वृक्षों की हत्या का दंड किसको दिया जाए? यह बात सोचनी होगी। हरे भरे जंगलों की जगह कंक्रीट के बंजर जंगल खड़े नज़र आते हैं। इसका कौन जिम्मेदार है। प्रकृति के नुकसान का तांडव कब तक चलेगा? और पृथ्वी कितना झेलेगी हमारा जीवन इन पेड़ पौधों का कर्जदार है, और हमेशा रहेगा बर्बादी का मंजर सामने नजर आता है। हे मानव हरियाली की सांसों की डोर ना काटो इसे चलने दो प्रकृति के इन फेफड़े का चलन बहुत जरूरी है।

प्रकृति के आंगन में सभी जगह जीवन है, जैसे मानव पशु ,पक्षी ,पेड़ पौधे, नदी, पहाड़, झरने सभी में जीवन है। इसलिए हम सभी मिलकर अपने आसपास और अपने घरों को सबसे पहले स्वच्छ करें, पेड़ पौधे लगाए और वायु शुद्धिकरण के लिए लोक अभियान की शुरुआत करें ताकि हम सभी अपने पर्यावरण को बचाने में सफल हो हम सभी मानव अपनी धरती मां के साथ धरती पुत्र, पुत्री जैसा व्यवहार करें जिससे हमारा पर्यावरण सभी के लिए उपयोगी हो। हमारा कर्तव्य है, कि अपने विद्यार्थियों में भी प्रकृति और पर्यावरण के प्रति आत्मीय लगाव बढ़ाएं ।उन्हें प्रकृति की रक्षा करने के लिए प्रेरित भी करें, फोन से बाहर निकाल कर वास्तविक दुनिया में हरियाली फैलाए आसपास खूब सारे पेड़ लगाएं ।

— आसिया फारूकी

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र