पद से नहीं काम से प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए
आज प्रायः देखा जा रहा है जिसके पास ज्यादा पैसा है अथवा बड़ा पद है उन्हें लोग ज्यादा ही प्रतिष्ठा और मान देते हैं। लोग यह नहीं देखते की अमुक व्यक्ति ने यह धन कैसे अर्जित किया है, कहीं इसने अपने पद का दुरुपयोग तो नहीं किया। खैर जो भी हो आज के इस पूंँजीवादी दौर में यह सोंचने और समझने का बहुत कम ही लोगों के पास फुर्सत है। आज लगभग हर आदमी अपने फिराक में है जैसे भी हो अपना काम निकलना चाहिए, कौन क्या है इससे हमें क्या लेना यदि बेईमान से काम निकलता है तो क्या हुआ, उसका जिंदावाद करने से लोग पीछे नहीं हटते। मैं समझता हूंँ यही वह मूल अवसरवादी कारण है जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। आज के भ्रष्ट नौकरशाह और पतित नेताओं को ऐसे माहौल में अपना उल्लूसीधा करने का पूरा अवसर मिल जाता है। जब भ्रष्टाचार में लिप्त नौकरशाहों और नेताओं के पीछे भी बड़ी जनसमुदाय खड़ी हो तो निश्चित ही यह उन्हें अपने कुकृत्यों पर लज्जित होनें का अवसर नहीं देता बल्कि उन्हें इन कुकृतयों को फिर से करने के लिए मनोबल देता है।
कोई भी व्यक्ति चाहे वो आर्थिक अथवा नैतिक जैसा भी अपराध किया हो उसके अनुरूप उसमें लज्जाबोध कराना जनता का काम है किंतु जनता ही जब अपराधियों के पीछे चलने लगे तो फिर उन भ्रष्ट और पतित लोगों में शर्मिंदगी की भाव उत्पन्न ही क्यों होगी, निश्चित ही ऐसे गिरे लोगों से आम जनता को अपना मोह भंग करते हुए उन्हें अकेला आत्ममंथन को छोड़ देना चाहिए। ऐसा करने से भ्रष्ट और पतित लोग केवल न्यायालय से ही दण्ड नहीं पायेंगे बल्कि जनता के नजरों से भी गिरकर मनोवैज्ञानिक दण्ड पाएंगे। आज सजा-आफता लोग जिन्हें कानून ने भ्रष्ट घोषित किया, अपराधी घोषित किया वो भी राजनीति में बढ़चढकर अपना प्रभाव दिखा रहे हैं और इन सबके पीछे उन्हें मिल रहा जनसमर्थन है। सवाल यह उठता है कि कोई गलत कार्य करके भी यदि प्रतिष्ठित है तो फिर वह इस गलत कार्य को क्यों नहीं दुहराएगा, उसे तो फिर से कुकृत्य दुहराने को बल मिलेगा। इसलिए आज वक्त की पुकार है की आम जनता भी सजग हो और क्या सही है और क्या गलत है इसको समझते हुए सही लोगों के पक्ष में खड़ा हो।
आज कई अपराधियों और भ्रष्टाचारियों को अपने जाति का जबरदस्त समर्थन प्राप्त है यह उन भ्रष्टाचारियों को जातिय प्रतिष्ठा देता है जो जनहित के लिए खतरनाक है। यदि जाति और धर्म से राजनीति चलेगा तो निश्चित लोकतंत्र की कलेजा फटेगा। आज की राजनीति धन, धर्म और जाति से काफी प्रभावित हो रही है जो निश्चित ही चिन्ता की विषय है। हालांकि इसके पीछे भी देखा जाय तो धूर्त राजनितज्ञों का ही जबरदस्त हाथ है लेकिन सवाल यह उठता है की इन धूर्त राजनीतिज्ञों को सबक सिखाने की जिम्मेवारी कौन उठाएगा, यह भी तो जनता को ही उठानी होगी न। यदि आम जनता ही ऐसे भ्रष्टाचारियों के पक्ष में हो तो देश का भविष्य राम ही जाने कैसा होगा।
लोकतंत्र को यदि मजबूत करना है और अपराध एवं भ्रष्टाचार से मुक्ति पानी है तो निश्चित ही आम जनता को आज भ्रष्टाचारी को भ्रष्ट अथवा चोर कहना होगा, अपराधी को अपराधी कहना होगा,और आम लोगों को अपने संकीर्ण स्वार्थ से ऊपर उठना होगा। कोई लूटकर यदि धन अर्जित कर लिया है तो आम जनता को चाहिए को वो उससे घृणा करे ताकि ईमानदार लोगों को ये लगे की ईमानदारी की मूल्य क्या होती है। भ्रष्ट लोगों को भी यह यहसास कराना आवश्यक है की जैसे-तैसे धन इकट्ठा करके कोई कभी सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं कर सकता । ऐसा करने से निश्चित ही आम लोगों को नैतिक बल मिलेगा एवं देश और समाज को ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ नेतृत्व प्राप्त होगा जो देश का मान पूरे दुनिया में बढ़ाएगा।
— अमरेन्द्र
सामयिक प्रस्तुतीकरण। पद से नहीं काम से प्रतिष्ठा मिलने की बात एक दम सही है किन्तु पद ही काम के आधार पर मिलने चाहिए। लोकतन्त्र में ’यथा प्रजा-तथा राजा’ की कहावत चलती है। जब जनता ही मुफ़्त के आश्वासनों और जाति या धर्म के आधार पर मतदान करेगी, जब चुनाव में करोड़ों रुपए खर्च करने वाले करोड़पतियों को जिताया जाएगा, तब ईमानदारी की बात करना ही हास्यास्पद हैं। वास्तविकता यह है कि जन सामान्य को जन हित व ईमानदारी से कोई लेना-देना नहीं है। सभी अपने स्वार्थ के आधार पर समर्थन करते हैं। ईमानदार आदमी को तो अपने परिवार में ही समर्थन नहीं मिलता। जब शादियों का आधार ही पैसा हो गया हो, तो परिवार का आधार सच्चाई और ईमानदारी कैसे हो सकती है? जब परिवार का आधार स्वार्थ हो, तो समाज में जीवन मूल्यों को प्रतिष्ठा कैसे मिल सकती है?