लघुकथा

बेटी

सुबह सुबह अय्यर साहब समाचारपत्र को घोंट रहे थे, तभी पीछे से दो कोमल सी गुलाब की पंखुड़ियों जैसे स्पर्श ने आंखे बंद कर दी।
समझकर भी अनजान बनते हुए बोले, “कौन हो भई?”
“पप्पा, मैं तुम्हारे लाडली, रीवा। रोज सुबह से मेरे लिए व्यस्त रहते हो, कभी स्कूल, कभी स्विमिंग, कभी डांसिंग, कभी कराटे क्लास पहुँचाते हो। आज मम्मा से पूछ कर मैंने, इडली, डोसा, चटनी सांभर, हलवा भी बनाया है, डाइनिंग टेबल पर चलो।”
और अय्यर साहब देख दंग रह गए, टेबल पर फादर्स डे का उपहार और ब्रेकफास्ट सजा हुआ है। उन्होंने रीवा को बड़े प्यार से गले लगाया और गाने लगे- “जिनको हैं बेटियां वो ये कहते हैं, परियों के देश मे हम तो रहते हैं !!”

— भगवती सक्सेना गौड़

*भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर