भारतीय इतिहास का स्वर्णिम काल : हिंदवी स्वराज्य
भारतीय पंचांग में ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, विक्रम संवत १७३१ (६ जून १६७४) की तिथि भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में कालजयी तिथि है। यह हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी जी महराज के राज्याभिषेक की तिथि है। इसी दिवस पर छत्रपति शिवाजी महाराज ने “हिन्दू पदपादशाही” के अपने संकल्प को साकार किया था। शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक माता जीजाबाई और समर्थ गुरू स्वामी रामदास जी के निर्देशन में हुआ था । इसलिए यह केवल राज्याभिषेक आयोजन भर न था । अपितु इसे संपूर्ण भारत राष्ट्र के स्वाभिमान और स्वत्व जागरण के उत्सव का स्वरूप प्रदान किया था। शिवा जी महराज का जन्म उस कालखण्ड में हुआ जब भारतीयों पर विधर्मियो द्वारा क्रूर अत्याचार किया जा रहा था। मन्दिर तोड़े जा रहे थे, खुले बाजार में गौ माता को काट दिया जाता था, माताओं – बहनों को मलेक्षों के द्वारा अगवा कर लिया जाता था, जबरन इस्लाम कबूल कराने का दबाव बनाया जाता था, हिन्दुओं की संपत्ति दिन – दहाड़े लूट ली जाती थी। ऐसे समय में वीर प्रसूता मां जीजा बाई की कोंख से शके पंद्रह सौ इक्यावन में कृष्ण फाल्गुन द्वितीया को शिनेरी के दुर्ग में बालक शिवा का जन्म होता है। बालक शिवा को गढ़ने का कार्य उनकी माता जीजाबाई ने किया, माता जीजाबाई ने बचपन से ही शिवा को रामायण, महाभारत उपनिषदों एवं वीर महापुरुषों की कहानियों को सिखाकर निर्भीक, निडर तथा धर्म रक्षा की प्रेरणा प्रदान की। बालक शिवा की देश भक्ति का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण यह मिलता है कि बारह वर्ष की उम्र में ही भगवान रोहिणेस्वर के मन्दिर जाकर उंगली काट कर शंकर को अभिषेक कर गौ, ब्राह्मण, माताओं – बहनों एवं देश की रक्षा का संकल्प लिया। यह वह समय था कि यदि कोई हिन्दू स्वतंत्र राज्य की कल्पना करे और मुगलों को पता चल जाए तो उसे तत्काल गिरफ्तार कर लिया जाता था। इस प्रकार के घोर अत्याचार के वातावरण में हिंदवी स्वराज्य स्थापित करने का संकल्प किया। शिवा जी महाराज कुशाग्र बुद्धि के साथ ही योग्य प्रशासक व संगठन छमता के धनी थे। वह काल-खंड साधारण नहीं था । वह मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा भारत में भारत्व के दमन अभियान का दौर था । औरंगजेब ने १६६५ में सभी साँस्कृतिक प्रतिष्ठानों और मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश निकाला था । बल, भय और लालच से मतान्तरण का अभियान चलाया जा रहा था। भारत के मूल निवासियों के समक्ष अपनी ही मातृभूमि पर प्राण बचाने और पेट भरने का संकट सामने था। उन विषम और विपरीत परिस्थितियों में शिवाजी महाराज ने स्वत्व और स्वाभिमान जागरण अभियान आरंभ किया वह भी अपने चारों ओर आक्रमणकारी सत्ताओं के भीषण दबाव के बीच। और यह उनकी संकल्पशक्ति थी कि उन्होंने पूरे भारत को दासत्व से मुक्ति का मार्ग दिखाया। हिन्दवी स्वराज्य या हिन्दू साम्राज्य की स्थापना इतिहास का यह अद्भुत प्रसंग है जिसके उदाहरण दुनियाँ में बहुत कम देखने को मिलते हैं । शिवाजी महाराज का संकल्प केवल अपना साम्राज्य स्थापना करना भर नहीं था अपितु संपूर्ण भारत वासियों को स्वत्व जागरण का संदेश देना था इसलिए इसका नाम “हिन्दवी स्वराज्य” रखा गया । शिवा जी महराज की कूटनीति बहुत ही आदर्श रूप में थी वह चाणक्य नीति, भगवान श्रीकृष्ण की नीति के पक्षधर थे। उनका एक मत था कि कोई युद्ध जीतने के लिए लड़ा जाता है हारने के लिए नही। विजय श्री ही हमें प्राप्त करना ही है उसके लिए व्यूह रचना कैसी हो जिससे हमें विजय प्राप्त हो युद्ध जीतने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद का प्रयोग भी उनके द्वारा किया जाता था। शिवा जी महराज की राज्य व्यवस्था में भी स्वाभिमान झलकता है। उनकी सैन्य व्यवस्था अष्ट प्रधानों से युक्त थी। गुप्तचरों में परस्पर वार्तालाप संवाद शैली भी देखने को मिलती है जिसके कारण उनमें राज्य के प्रति देशभक्ति विद्यमान है। छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन अलौकिक है। उनमें अदम्य साहस और नेतृत्व के विरले गुण अभिलक्षित होते हैं। वर्तमान समय में यह महान व्यक्तित्व और भी सामियक हो चला है। शिवा जी के स्वराज्य की संकल्पना के मूल तत्व यदि आज लागू किए जाएं तो भारत निःसंदेह विश्व के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच सकता है।
— बाल भास्कर मिश्र